‘आदमी का चेहरा’ कविता कुंवर नारायण द्वारा रचित एक ऐसी कविता है, जिसकी रचना उन्होंने देश के विकास में अपने अथक परिश्रम करके योगदान देने वाले मजदूर, किसान, श्रमिक, कुली आदि जैसे मेहनतकश लोगों को केंद्रित करके लिखी है।
इस कविता के माध्यम से उन्होंने यह स्पष्ट करने का प्रयत्न किया है कि श्रम पूजा के समान है। श्रम करने वाला ऊँचा-नीचा नहीं होता। श्रम को कभी भी हेय दृष्टि से नहीं देखना चाहिए।
देश के विकास में अपना जो-तोड़ परिश्रम करके अपना योगदान देने वाले मजदूर, किसान, कुली, बढ़ई, नाई, मोची के योगदान को हम अक्सर भूल जाते हैं।
छोटे से छोटे कार्य करने वाला व्यक्ति सम्मान योग्य है। कुली का कार्य करने वाला व्यक्ति हो अथवा सड़क पर मजदूरी करने वाला मजदूर या खेतों में जी-तोड़ परिश्रम करने वाला किसान सभी का अपना महत्व है। यह सभी अपने-अपने कर्म द्वारा देश के विकास में उतना ही योगदान देते हैं, जितना की एक अमीर उद्योगपति देता है। बल्कि यह मेहनतकश परिश्रमी व्यक्ति ही देश की असली रीढ़ हैं। इन्हीं पर देश की अर्थव्यवस्था टिकी है। यदि यह काम करना बंद कर दे तो देश के विकास की गति रुक जाएगी।
कविता के माध्यम से यह बताने की चेष्टा की गई है कि परिश्रम करने वाले व्यक्तियों का जो अपना कार्य वो सहज रूप से कर लेते हैं, वह कार्य यदि हमें करने को मिले तो हमें पता चलता है कि वह कितना कठिन कार्य है और उसको करने में कितनी अधिक श्रम लगता है। इसलिए हमें उनके श्रम के महत्व को कभी भी कम नहीं समझना चाहिए।
कुंवर नारायण की कविता – आदमी का चेहरा ‘कुली!’
पुकारते ही
कोई मेरे अंदर चौंका ।एक आदमी आकर खड़ा हो गया मेरे पास
सामान सिर पर लादे
मेरे स्वाभिमान से दस क़दम आगे
बढ़ने लगा वहजो कितनी ही यात्राओं में
ढ़ो चुका था मेरा सामान
मैंने उसके चेहरे से उसे
कभी नहीं पहचानाकेवल उस नंबर से जाना
जो उसकी लाल कमीज़ पर टँका होताआज जब अपना सामान ख़ुद उठाया
एक आदमी का चेहरा याद आया
कुंवर नारायण
कुंवर नारायण हिंदी साहित्य के एक जाने-माने कवि रहे हैं। उनका जन्म उत्तर प्रदेश के फैजाबाद में 1927 में हुआ था। वह नई कविता के सशक्त हस्ताक्षर के तौर पर जाने जाते हैं। वह अज्ञेय द्वारा संपादित ग्रंथ ‘तीसरा सप्तक’ के प्रमुख कवियों में से एक थे। उन्होंने कई संवेदनशील कविताओं के अलावा अनेक कहानियां, समीक्षाएं भी लिखी। उन्होंने सिनेमा से संबंधित साहित्य की भी रचना की।
उनकी प्रमुख रचनाओं में चक्रव्यूह, अपने सामने, कोई दूसरा नहीं, इन दिनों आदि के नाम प्रमुख है।
उन्हें साहित्य का सर्वोच्च पुरुस्कार ज्ञानपीठ पुरस्कार भी 2005 में मिल चुका है।