कवि ने अपने आने को ‘उल्लास’ और जाने को ‘आँसू बनकर बह जाना’ इसलिए कहा है, क्योंकि कवि जब भी लोगों के पास आता है, तो वह मस्ती भरी बहार लेकर आता है और लोगों में खुशियां भरता है।
लोग उसका साथ पाकर खुश हो जाते हैं। कवि और लोगो में अपनापन का भाव आ जाता है। लेकिन कवि की आगे बढ़ना है, इसलिये उसे एक दिन सबको को छोड़कर जाना पड़ता है, ऐसे में लोग उसे छोड़ना नहीं चाहते और विदाई के गम में लोगों की आँखों से आँसू निकल पड़ते हैं।
कवि ने आकर लोगों में जो खुशियां बाटीं थीं तो कवि के जाने से लोगों को दुख होता है। विदाई के वे क्षण आँसू बनकर वह निकलते हैं। इसी कारण कवि ने अपने आने को ‘उल्लास’ और जाने को ‘आँसू बनकर बह जाना’ कहा है।
संदर्भ पाठः
‘दीवानों की हस्ती’ – भगवतीचरण वर्मा
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