कवि ने स्वत्व को सुधा रस इसलिए कहा है, क्योंकि स्वत्व यानी अपना स्वयं का आत्मबल अमृत के समान होता है। जिस व्यक्ति ने अपने आत्मबल को पहचान लिया, वह अपनी आत्मा से जीवन के हर असंभव काम को कर सकता है।
जीवन की कठिनाइयों से जूझने के लिए तथा जीवन में आगे बढ़ने के लिए आत्मबल का मजबूत होना आवश्यक है। इसीलिए कवि ने स्वयं के आत्मबल को सुधा रस यानि अमृत कहा है। क्योंकि यह आत्मबल रूपी अमृत पीने से ही मनुष्य के अंदर उत्साह का संचार होगा और वह अपने लक्ष्य की ओर निरंतर आगे बढ़ सकेगा।
टिप्पणी
कविता ‘नर हो ना निराश करो मन को’ के माध्यम से कवि मैथिली शरण गुप्त ने मानव को जीवन की निराशा को दूर करके अपने जीवन में आशा का संचार भरने के लिए प्रेरित किया है।