लक्ष्मण ने ‘कुम्हड़बतिया’ का दृष्टांत एक बहुत ही महत्वपूर्ण और तनावपूर्ण क्षण में दिया था। यह घटना तब घटी जब परशुराम, जो एक महान योद्धा और ऋषि थे, लक्ष्मण को लगातार अपमानित कर रहे थे और उन्हें अपने क्रोध, शक्ति और प्रतिष्ठा का बोध करा रहे थे। परशुराम बार-बार अपने प्रसिद्ध फरसे की धार और अपने पराक्रम का बखान कर रहे थे, जिससे लक्ष्मण का धैर्य टूट गया।
इस परिस्थिति में, लक्ष्मण ने ‘कुम्हड़बतिया’ का उदाहरण देकर परशुराम को एक कठोर संदेश दिया। उन्होंने कहा कि परशुराम की धमकियाँ उन पर वैसे ही प्रभावहीन हैं, जैसे कोई फूँक मारकर पहाड़ को हिलाने का प्रयास करे। लक्ष्मण ने स्पष्ट किया कि वे कोई कमजोर व्यक्ति नहीं हैं जो परशुराम की उंगली दिखाने मात्र से डर जाएंगे। इस दृष्टांत के माध्यम से लक्ष्मण ने न केवल अपनी निडरता का प्रदर्शन किया, बल्कि परशुराम के अहंकार को भी चुनौती दी।
लक्ष्मण का यह कथन उनके आत्मविश्वास और साहस को दर्शाता है। वे परशुराम को याद दिलाना चाहते थे कि उनकी धमकियों से वे भयभीत नहीं हैं और अपनी शक्ति पर पूर्ण विश्वास रखते हैं। हालाँकि, लक्ष्मण ने यह भी स्पष्ट किया कि वे परशुराम को एक ऋषि और महात्मा के रूप में सम्मान देते हैं, और रघुकुल की परंपरा के अनुसार, वे ब्राह्मणों या ऋषियों से युद्ध नहीं करते। इस प्रकार, लक्ष्मण ने अपनी वीरता और मर्यादा दोनों का प्रदर्शन किया।
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