पल्लवन
होनहार बिरवान के होत चीकने पात
‘होनहार बिरवान के होत चीकने पात’ यह एक कहावत है, जिसका अर्थ यह है, जो बच्चा आगे बड़ा होकर कोई प्रसिद्ध व्यक्ति बनेगा, बड़ा काम करेगा, तो उसके पांव बचपन में ही चिकने दिखाई देते हैं। अर्थात चिकने पाव वाला बच्चा होनहार होता है, जो बड़ा होकर कोई बड़ा कार्य करेगा, कोई प्रसिद्ध व्यक्ति बनता है।
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स्वामी विवेकानंद भारत के प्रसिद्ध आध्यात्मिक संत थे, लेकिन संत बनने के उनके लक्षण उनके बचपन से ही दिखाई पड़ने लगे थे। उनके घर में आध्यात्मिक वातावरण का प्रभाव था। उनकी मां धार्मिक प्रवृत्ति की महिला थी और पुराण, रामायण, महाभारत आदि ग्रंथों का अध्ययन करती रहती थीं। यही आध्यात्मिक वातावरण के संस्कार स्वामी विवेकानंद के मन पर भी पड़े। उनमें बचपन से ही धर्म एवं अध्यात्म के संस्कार विकसित हो गए थे। उनके मन में बचपन से ही ईश्वर को जानने की जिज्ञासा उत्पन्न हो गई थी। इसी कारण वह अपने माता-पिता तथा अन्य बड़े जनों से ईश्वर के बारे में जिज्ञासा संबंधी प्रश्न पूछते रहते थे। ज्यों-ज्यों स्वामी विवेकानंद बड़े होते गए, उनमें में आध्यात्मिकता और अधिक गहरी होती गई। शीघ्र ही उन्होंने स्वामी रामकृष्ण परमहंस से दीक्षा प्राप्त कर ली और उनके शिष्य बन कर एक बड़े महान संत बने।
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