बारहमासा कविता का संदेश
‘बारहमासा’ कविता नारायण लाल परमार द्वारा लिखित रचित एक कविता है। इस कविता के माध्यम से कवि ने ऋतुओं के आने और ऋतुओं के साथ आने वाली खुशियों तथा उत्सवों का संदेश दिया है। कवि के अनुसार 1 वर्ष में 12 महीने होते हैं। कवि ने देसी महीनों को आधार बनाकर हर माह के साथ कुछ ना कुछ कुछ उत्सव और खुशियां जोड़ी हैं तथा सभी महीनों और उनमें आने वाले उत्सव-त्योहारों की विशेषता बताने का प्रयास किया है। कवि के अनुसार पूरे वर्ष में अलग-अलग महीनों में आने वाले यह व्रत-उत्सव त्योहार हमारे जीवन में खुशी एवं उल्लास बढ़ते हैं। कवि ने 12 देसी महीनों को आधार बनाया है, जिनमें चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ़, श्रावण, भाद्रपद, आश्विन, कार्तिक, मार्गशीर्ष, पौष, माह, फाल्गुन इन 12 महीनों तथा उनमें आने वाले उत्सव त्योहारों की विशेषताओं को प्रकट करके मानव जीवन में उल्लास एवं खुशी के महत्व का संदेश प्रकट किया है।
नारायण लाल परमार द्वारा रचित बारहमासा कविता इस प्रकार है :
चैत महीने का प्यारा सुंदर रूप अनूप है,
गर्म हवा चलने लगती, खटमिट्ठी सी धूप है।
आते ही बैसाख के, छुट्टी हुई मदरसों की,
लगा गूंजने घर-आंगन, किलकारी से बच्चों की।
कोई लगातार हारा, लेकिन कोई जीत रहा,
तरह-तरह के खेलों में, जेठ महीना बीत रहा।
काले-काले बादल भी, नभ में चले दहाड़ के,
आंधी इतराने लगी, लगते ही आषाढ़ के।
सावन की शोभा न्यारी, हरियाली के ठाठ हैं,
नदी सरोवर छलक रहे, डूब गए सब घाट हैं।
पता ना चलता तारों का, जाने कहाँ मयंक है,
झांक नहीं पाता सूरज, भादो का आतंक है।
भैया क्वार महीने में, निर्मल होती जलधारा,
मौसम कर देता सारी, हँसी-खुशी का बंटवारा।
कार्तिक में जाड़ा आता, साथ पटाखे फुलझड़ियाँ,
फबती सबके चेहरों पर, मुस्कानों की मधु लड़ियाँ।
अगहन नाच नचा देता, बर्फ़ तरीका है पानी,
चलो नहा लो माँ कहती, नहीं चलेगी मनमानी।
उड़ी पतंगें पौष में, बाज़ी लगती जोर से,
गली, मोहल्ले, अटारियाँ, भर जाते जब शोर से।
माघ महीना भर देता, मन में नई उमंग है,
कहीं मजीरे, झांझ कहीं, बजता मृदंग है।
लोग वह आ पहुंचा फागुन, रस की फुहार है,
रंगों के कारण लगता, यह जीवन त्योहार है।