लैकै सुघरु खुरुपिया, पिय के साथ।
छइबैं एक छतरिया, बरखत पाथ ।।
संदर्भ : ये दोहा (बरवा छंद) रहीमदास जी की रचना है। इस दोहे के माध्यम से रहीमदास ने नायिका के उस मनोदशा का वर्णन किया है, जब वो अपने प्रियतम के साथ बाहर घूमने निकली है।
भावार्थ : रहीम दास कहते हैं कि नायिका अपने प्रियतम के साथ बाहर घूमने जा रही है। वह अपने प्रियतम के साथ बाहर घूमने जाने के लिए बेहद उत्साहित है। इसी कारण उसने बना श्रृंगार किया है। वह अपने प्रिय के साथ छतरी लेकर भ्रमण कर रही है। अपने प्रियतम का साथ और मनमोहक वातावरण उसके मन को बेहद उत्साहित किए हैं। एक ही छतरी के नीचे दोनों हल्की-हल्की बारिश में घूमते हुए जा रहे हैं। नायिका के लिए अपने प्रियतम के साथ बताया गया यह सुंदर दिन भाव-विभोर कर रहा है।
विशेष : रहीमदास ने इस छंद के माध्यम के नायिका के प्रेमभरे मनोभावों का सुंदर चित्रण किया है।