‘अब कहाँ दूसरे के दुःख से दुःखी होने वाले’ पाठ मे लेखक ने इस बात पर बल दिया है, कि संसार के लोग अब बदल गए हैं। अब लोग अधिक स्वार्थी हो गए हैं। अब लोगों को इस धरती पर रह रहे अन्य प्राणियों की चाहे वह मनुष्य हो या अन्य पशु-पक्षी, किसी के दुःख-तकलीफ से कोई चिंता नहीं। पहले लोगों में संवेदनाएं अधिक थी। वह छोटे से छोटे प्राणी का ख्याल रखते थे, चाहे वह मनुष्य हो अथवा कोई पशु पक्षी। लेकिन अब लोगों में संवेदनाएं खत्म हो गई हैं। अब लोग अपने जीवन के भाग दौड़ में ही व्यस्त रहते हैं। दूसरों के विषय में सोचने की उन्हें फुर्सत नहीं है। लेखक के अनुसार पहले के लोग सब लोग मिल जुल कर रहते थे। मनुष्य आपस में तो मिल-जुलकर रहते ही थे, मनुष्यों दूसरे प्राणियों की भी चिंता रहती थी, और वह उन्हें कोई नुकसान नही पहुँचाते थे। लेकिन अब लोग बदल चुके हैं।। बढ़ती जनसंख्या के कारण प्राकृतिक संसाधनों पर दबाव पड़ रहा है और लोगों में अधिक से अधिक संसाधनों का दोहन करने की होड़ मची हुई है।
लेखक के अनुसार धरती पर रहने वाले सभी प्राणियों का इस पर समान अधिकार है। किसी भी प्राणी को दूसरे प्राणी से भेदभाव नहीं करना चाहिए। प्रकृति ने सबको समान रूप से रहने का अधिकार प्रदान किया है और प्रकृति अपने सभी तत्वों को भी धरती पर रहने वाले सभी प्राणियों को समान रूप से बांटती है, चाहे वे रोशनी हो, हवा हो या पानी हो। हम मनुष्यों को भी सभी का ध्यान रखना चाहिए तथा प्रकृति के नियमों का पालन करना चाहिए।
संदर्भ पाठ
‘अब कहाँ दूसरों के दुख दुखी होने वाले’ लेखक- निदा फाज़ली
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