‘यशपाल’ की रचना समाज और देश में पहले भेदभाव और समाज के पाखंड को बेनकाब करती है। ‘दुःख का अधिकार’ पाठ के माध्यम से ये बात स्पष्ट हो रही है।
‘दुःख का अधिकार’ पाठ में लेखक ने के माध्यम से यही पता चल रहा है कि दुकान को व्यक्त करने के लिए समाज में हैसियत होनी चाहिए। जिनकी हैसियत समाज में अच्छी होती है, उसके दुःख में सब शरीक होना चाहते हैं। अच्छी हैसियत वाले व्यक्ति के छोटे से दुःख के प्रति भी संवेदना व्यक्त करने के लोग तत्पर रहते हैं, लेकिन गरीबों के दुःख को कोई नहीं पूछता। लोग हैसियत के आधार पर ही दुःखों का आकलन करते हैं। उन्हें गरीबों का दुःख पाखंड लगता है।
लेखक ने इस पाठ में एक बुढ़िया स्त्री का वर्णन किया है, जिसका जवान बेटा साँप के काटने से मर गया था। घर में कुछ दाना-पानी नहीं था और उसके पोते भूख से बिलख रहे थे। ऐसी स्थिति में बुढ़िया खरबूजे बेचने के लिए बाजार में आ गई ताकि खरबूजे बेचकर कुछ पैसे कमा सके और घर में भूखे बच्चों के लिए राशन पानी ला सके। लेकिन बाजार और समाज के लोगों को उसके दुःख से कोई सरोकार नहीं था।
उन्हें ये दिखाई दे रहा था कि आज ही उसके बेटे की मौत हुई है और आज वह अपना व्यापार लेकर बैठ गई। लेकिन ये जानने की कोशिश नहीं की कि ऐसा वो मजबूरी में कर रही थी क्योंकि घर में छोटे-छोटे बच्चे भूख से तड़प रहे थे।
लेखक भी अच्छे कपड़े पहने हुए था इसलिए अपने कपड़ों के कारण उसे रोती हुई बुढ़िया से कुछ पूछने में हिचक हो रही थी क्योंकि लेखक को अपने कपड़े और अपनी वेशभूषा के कारण उसके पास बैठने में संकोच हो रहा था।
लेखक को अपनी एक पुरानी घटना भी याद आ गई, जब एक उसके पड़ोस में एक धनी महिला के पुत्र की मृत्यु हो गई तो आसपास के सब लोग उसके दुख को पूछने लगातार आते रहे क्योंकि उसकी सामाजिक हैसियत अच्छी थी।
इस बात से स्पष्ट होता है कि लोग हैसियत के अनुसार ही दुखो पर संवेदना व्यक्त करते हैं। उन्हें गरीबों के दुःख व्यक्त करने में अनेक तरह की कमियां नजर आती है, जबकि अमीरों के दुःख के साथ हमेशा खड़े रहते हैं।
ये कहानी समाज मे फैले इसी दोहरे मानदंड और भेदभाव को बेनकाब करती है।
संदर्भ पाठ : दुःख का अधिकार, लेखक – यशपाल (कक्षा-9) |
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