तताँरा-वामीरो का संबंध उस सामाजिक बुराई के कारण सफल नहीं हो सका, जिसके अंतर्गत अंडमान निकोबार द्वीप समूह के सभी गाँव में यह कुप्रथा यानि सामाजिक बुराई थी कि किसी एक गाँव का युवक या युवती किसी दूसरे गाँव के युवक या युवती से विवाह नहीं कर सकते।
युवक-युवती के पारस्परिक विवाह के लिए यह आवश्यकता था कि वह युवक और युवती दोनों एक ही गाँव के निवासी हों। अंडमान निकोबार द्वीप समूह के सभी गाँव में यह कुप्रथा थी कि अलग-अलग गाँव के युवक युवती विवाह नहीं कर सकते थे।
एक ही गाँव के युवक युवती ही विवाह कर सकते थे। क्योंकि तताँरा और वामीरो अलग-अलग गाँव के रहने वाले थे। तताँरा ‘पासा’ गाँव का निवासी था जबकि वामीरो ‘लपाती’ गाँव की निवासिनी थी। इसी कारण दोनों के बीच प्रेम होने के बावजूद गाँव वालों ने उन दोनों के विवाह संबंध को सफल नहीं होने दिया। इसी कारण तताँरा को अपने प्राण गंवाने पड़े और वामीरो तताँरा की याद में विक्षिप्त हो गई। इस सामाजिक बुराई का अंत तताँरा की मृत्यु और वामीरो के विक्षिप्त होने के बाद हुआ, जब गाँव वालों को इसका एहसास हुआ।
संदर्भ पाठ
‘तताँरा-वामीरो की कथा’ लीलाधर मंडलोई द्वारा लिखा गया एक पाठ है, जिसमें उन्होंने तताँरा और वामीरो नामक दो युवक-युवती के प्रेम कथा का वर्णन किया है। यह दोनों युवक-युवती अंडमान निकोबार द्वीप समूह के दो अलग-अलग गाँवों ‘पासा’ और ‘लपाती’ के निवासी थे।