”अब मैं नाच्यौ बहुत गोपाला” इस पंक्ति में रस का भेद इस प्रकार होगा…
अब मैं नाच्यौ बहुत गोपाला
रस : शांत रस
स्पष्टीकरण :
इस पंक्ति में ‘शांत रस’ है। इस पंक्ति में शांत रस इसलिए है क्योंकि यहाँ पर सूरदास अपने आराध्य श्रीकृष्ण से प्रार्थना और याचना कर रहे हैं।
यह पंक्ति सूरदास द्वारा रचित दोहे की है। इस दोहे में सूरदास अपने मन में उत्पन्न वैराग्य के भाव के प्रकट कर रहे हैं। उनका संसार से मन भर गया है। वह अपने आराध्य से प्रार्थना कर रहे हैं कि वह अब इस संसार के छल-प्रपंच से ऊब चुके है। वे चाहते हैं कि उनके आराध्य श्रीकृष्ण उनके मन के अंधकार को दूर करें।
शांत रस
शांत रस किसी भी काव्य में वहाँ पर प्रकट होता है जब संसार के प्रति वैराग्य की भावना उत्पन्न होती है। ऐसी स्थिति में व्यक्ति संसार के प्रति विरक्ति का भाव दिखाते हुए अपने ईश्वर के प्रति आसक्ति का भाव दिखाता है।
शांत रस का स्थाई भाव निर्वेद होता है, जो संसार के प्रति असंतोष और वैराग्य उत्पन्न होने को दर्शाता है। ऐसी स्थिति में मन को शांत करने की प्रक्रिया आरंभ होती है और व्यक्ति ईश्वर की भक्ति की ओर मुड़ जाता है।