राम ने परशुराम के क्रोध को शांत करने के लिए एक चतुर रणनीति अपनाई। उन्होंने स्वयं को परशुराम का दास बताकर उनके अहंकार को तुष्ट किया। राम ने कहा कि शिव धनुष तोड़ने वाला व्यक्ति परशुराम का ही कोई सेवक होगा। इस तरह राम ने अपनी विनम्रता दिखाते हुए परशुराम को शांत करने का प्रयास किया। यह रणनीति राम की कूटनीतिक समझ को दर्शाती है, जहां वे एक तनावपूर्ण स्थिति को बिना किसी टकराव के सुलझाने का प्रयास कर रहे थे।
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