परिमल-हीन पराग दाग-सा बना पड़ा है, हा! यह प्यारा बाग खून से सना पड़ा है।”
आशय इस प्रकार है…
इन पंक्तियों का आशय यह है कि इस बाग में जो फूल बिखरे पड़े हैं, वह सुगंधहीन हैं, क्योंकि उनकी सुगंध को नष्ट कर दिया गया है। यहाँ पर फूल से तात्पर्य जलियांवाला बाग में मारे गए उन तमाम भारतीयों के शवों से हैं, जिन पर जनरल डायर ने गोलियां चलवाकर मार दिया था। अब उनमें प्राण शेष नहीं रह गए हैं, इसलिए अब यह उनके शव सुगंध रहित फूल के समान है, जो बाग में जहाँ-तहाँ बिखरे पड़े हैं। यह पंक्तियां कवयित्री सुभद्रा कुमारी चौहान द्वारा रचित ‘जलियांवाले बाग में बसंत’ नामक कविता से ली गई हैं।
पूरी पंक्तियां इस प्रकार है…
परिमल-हीन पराग दाग़-सा बना पड़ा है।
हा! यह प्यारा बाग़ ख़ून से सना पड़ा है।
आओ प्रिय ऋतुराज! किंतु धीरे से आना।
यह है शोक-स्थान यहाँ मत शोर मचाना॥
व्याख्या : कवयित्री ऋतुराज बसंत का आह्वान करते हुए कहती है कि इस बाग में चारों तरफ जो फूल बिखरे पड़े हैं, उनमें सुगंध समाप्त हो चुकी है अर्थात जलियांवाला बाग में हजारों भारतीयों की हत्या कर उनके प्राणों को का हरण कर लिया गया है। अब यह प्यारा बाग उनके खून से सना पड़ा है। चारों तरफ खून ही खून बिखरा पड़ा है। इसलिए बसंत ऋतु यदि तुम आना तो यहाँ आते समय शांति से आना। तुम अगर कोई उपहार लाओ तो उपहारों को लाते समय उपहार का भाव प्रदर्शित ना करना बल्कि पूजा का भाव प्रदर्शित करना, क्योंकि यहाँ पर अब उन लोगों के शव हैं और उनके प्रति अब श्रद्धांजलि अर्पित करने का समय है। अपने साथ जो पुष्प लेकर आओगे भड़कीले और गहरे रंग के ना हो बल्कि उन्हें हल्की सी खुशबू हो और ओस उसे भीगे हुए हों।
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