इस पंक्ति में अलंकार का भेद इस प्रकार है :
काव्य पंक्ति – कहती हुई यों उत्तरा के नेत्र जल से भर गये। हिम के कणों से पूर्ण मानो, हो गये पंकज नये।।
अलंकार : उत्प्रेक्षा अलंकार
जानें क्यों ?
इस काव्य पंक्ति में उत्प्रेक्षा अलंकार इसलिए है क्योंकि यहां पर ‘उत्तरा के अश्रुपूर्ण नेत्रों’ जोकि उपमेय हैं, में ‘हिम जल कण युक्त पंकज’ उपमान की संभावना व्यक्त की गई है और ‘मानो’ वाचक शब्द के रूप में प्रयोग किया गया है।
उत्प्रेक्षा अलंकार उस काव्य में प्रकट होता है, जहाँ पर उपमेय में उपमान की संभावना व्यक्त कर दी जाती है।
उत्प्रेक्षा अलंकार क्या है?
‘उत्प्रेक्षा अलंकार’ की परिभाषा के अनुसार जहाँ पर उपमान के ना होने पर उपमेय में ही उपमान की संभावना मान ली जाए और अर्थात जहाँ पर उपमेय को ही उपमान बनाकर प्रस्तुत कर दिया जाए वहां पर ‘उत्प्रेक्षा अलंकार’ होता है।
उत्प्रेक्षा अलंकार दो प्रकार का होता है, फलोत्प्रेक्षा अलंकार हेतुप्रेक्षा अलंकार
उत्प्रेक्षा अलंकार का उदाहरण…
ले चला साथ में तुझको कनक, ज्यों भिक्षुक लेकर स्वर्ण।
यहाँ पर कनक उपमेय है, जोकि धतूरे के अर्थ के संदर्भ में प्रयोग किया गया है। ‘ज्यों’ वाचक शब्द के द्वारा कनक (धतूरा) उपमेय को स्वर्ण उपमान रूप में संभावना बनाकर प्रस्तुत कर दिया गया है, इसीलिए यहाँ पर ‘उत्प्रेक्षा अलंकार’ है।
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‘दीरघ-दाघ निदाघ’ में अलंकार है (क) श्लेष (ख) उपमा (ग) यमक (घ) अनुप्रास।