जग को ज्ञान के प्रकाश से जगमग किया जा सकता है।
ज्ञान के प्रकाश से मन में व्याप्त अज्ञानता के अंधकार को मिटाकर इस संपूर्ण जग को ज्ञान के प्रकाश से जगमगाया जा सकता है।
कवि सूर्यकांत त्रिपाठी अपनी कविता ‘वर दे, वीणावादिनी वर दे’ में कहते हैं कि…
काट अन्ध-उर के बन्धन-स्तर
वहा जननि, ज्योतिर्मय निर्झर,
कलुष-भेद तम-हर, प्रकाश भर
जगमग जग कर दे!
अर्थात हे माँ सरस्वती! आप हम सभी अज्ञानियों को अज्ञानता के बंधन से मुक्त कर दो। आप हमारे मन में व्याप्त अज्ञानता के अंधकार को मिटाकर हमारे अंदर ज्ञान के प्रकाश को भर दो। हमारे अंदर जो भी दोष हैं, पाप हैं, अहंकार हैं, इन सबको आप अपने प्रकाश के तेज से नष्ट कर दो। आप अपने ज्ञान रूपी प्रकाश से इस पूरे जग को जगमग कर दो यानि इस पूरे संसार को ज्ञान के प्रकाश से आलोकित कर दो।
निष्कर्ष
इस प्रकार जग को ज्ञान के प्रकाश से जगमग किया जा सकता है। यहाँ पर कवि का ज्ञान से तात्पर्य शिक्षा से है। कवि का मानना है कि शिक्षा का प्रकाश ऐसा प्रकाश है जो पूरे संसार के लोगों की अज्ञानता के अंधकार को मिटा सकता है। कवि निराला जी ने शिक्षा के महत्व को बताया है। इसी कारण वह माँ सरस्वती से प्रार्थना कर रहे हैं कि माँ सरस्वती सबकी अशिक्षा के अंधकार को दूर करें और सब शिक्षित बनें।