एक तरफ तो पान वाला कैप्टन चश्मे वाले का मजाक उड़ाता है तो दूसरी तरफ उसके हृदय में कैप्टन चश्मे वाले के प्रति संवेदनशीलता भी है क्योंकि पान वाले द्वारा कैप्टन का मजाक उड़ाने का मुख्य कारण कप्तान का साधारण व्यक्तित्व था।
कैप्टन एक साधारण सा विकलांग और पतला-दुबला, गरीब आदमी था जो चौराहे पर चश्मे की फेरी लगाता था। उसके व्यक्तित्व और सामाजिक स्थिति के कारण की पानवाले मे शायद उसके प्रति तुच्छ भाव उत्पन्न हो गए होंगे। इसीलिए पानवाला उसका मजाक उड़ाता था।
हालदार साहब द्वारा यह पूछे जाने पर की उसको कैप्टन क्यों कहते हैं, क्या वह नेताजी की आजाद हिंद फौज में कोई अधिकारी रह चुका था, तो पानवाला हँस पड़ता है और वह कहता है कि वह लंगड़ा क्या फौज में जाएगा। इस तरह वह कैप्टन चश्मे वाले का मजाक उड़ाता है, वहीं दूसरी तरफ पान वाले के हृदय में उसके प्रति संवेदनशीलता भी है।
संवेदनशीलता होने का मुख्य कारण रोज-रोज कैप्टन चश्मे वाले का उसी जगह पर फेरी लगाना था। अक्सर एक ही जगह पर अलग-अलग कार्य करने वाले लोगों के बीच जान-पहचान और मित्रता हो ही जाती है। कैप्टन चश्मा वाला उसी जगह पर रोज अपनी फेरी लगाता था, जहाँ पर पानवाले की दुकान थी। दोनों में कुछ बातचीत अवश्य होती होगी, इसी कारण दोनों में थोड़ी बहुत जान-पहचान हो गई होगी।
दूसरा कारण कैप्टन चश्मे वाले का नेताजी की मूर्ति के प्रति सम्मान की भावना के कारण भी पान वाला कैप्टन चश्मे वाले से प्रभावित हुआ होगा।
तीसरा कारण ये हो सकता किअपने आसपास के किसी भी साथी की मृत्यु आदि हो जाने पर मन को दुख तो अवश्य होता ही है, इसी कारण कैप्टन चश्मे वाले की मृत्यु होने पर पानवाला भी उदास हो जाता है। भले ही वह पूर्व में उसका मजाक उड़ा चुका था, लेकिन उसके अंदर कैप्टन चश्मे वाले के प्रति थोड़ी बहुत संवेदनशीलता भी थी।
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