‘सपनों के-से दिन’ पाठ के आधार पर कहें तो अभिभावकों को बच्चों की पढ़ाई में रुचि इसलिए नहीं थी क्योंकि उस समय के समाज में पढ़ाई के प्रति इतनी जागरुकता नहीं थी।
लेखक के गाँव में आसपास के जितने भी परिवार थे, वह परिवार छोटा मोटा व्यवसाय करने वाले मध्यमवर्गीय लोग थे। ये लोग आढ़तिये, किराने की दुकान, खेती अथवा अन्य कोई छोटा-मोटा व्यवसाय करते थे। वह लोग पीढ़ी दर पीढ़ी आधार पर अपने व्यवसाय करते थे और अपने बच्चों को भी अपने व्यवसाय में ही लगाना चाहते थे। अपनी इसी मनोवृति के आधार पर अभिभावकों की अपने बच्चों की पढ़ाई में रुचि नहीं थी। क्योंकि उनका मानना था कि बच्चों को पढ़ाई के लिए विद्यालय भेजना बेहद आवश्यक नहीं है।
उनका मानना था कि बच्चे केवल हिसाब किताब करना और बहीखातों को जांचना-परखना सीख जाएं इतनी ही पढ़ाई पर्याप्त हैय़ बच्चों को बहुत अधिक पढ़ा-लिखा पर कोई लाभ नहीं क्योंकि अंत में तो बच्चों को उनके व्यवसाय में ही लगना है, उनकी दुकान पर ही बैठना है या उनका व्यापार आदि ही संभालना है अथवा कृषि कार्य करना है।
इसी कारण अभिभावकों की अपने बच्चों की पढ़ाई में बहुत अधिक रुचि नहीं थी। वह पढ़ाई का खर्चा उठाने कोई जरूरी नहीं समझते थे, और इसे फिजूलखर्ती मानते थे। इसी सोच के कारण लेखक के गाँव में उसके आसपास के परिवार वाले अपने बच्चों को विद्यालय नहीं भेजते थे।
‘सपनों के से दिन’ पाठ लेखक ‘गुरुदयाल सिंह’ द्वारा लिखा गया एक संस्मरणात्मक निबंध है, जिसमें उन्होंने अपने बचपन के दिनों के प्रसंगों का वर्णन किया है।
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