यह प्रश्न रामधारी सिंह दिनकर द्वारा रचित कविता ‘गीत और अगीत’ से संबंधित है। इस कविता में कवि रामधारी सिंह दिनकर ने गीत और अगीत इन दो भावों का विवेचन किया है।
अगीत से कवि आशय
अगीत से कवि का आशय यह है कि जब मन के भाव उत्पन्न होकर मन में ही रह जाते हैं तो वह अगीत बन जाते हैं। गीत और गीत दोनों मन के भावों के प्रकटीकरण के स्वरूप हैं। अगीत भी महत्वपूर्ण है क्योंकि मन के भाव पहले अगीत रूप में उत्पन्न होते है। अगीत से ही गीत की रचना होती है। जब तक मन के भाव प्रकट नही होंगे गीत कैसे बनेगा। गीत पहले अगीत ही होता है, जो बाद में गीत बनता है।
गीत और गीत में मुख्य अंतर यही होता है कि जब मन के भाव प्रकट होकर शब्द अथवा स्वरों के रूप में फूट पड़ते हैं, तो वह गीत का रूप ले लेते हैं, लेकिन यही मन के भाव प्रकट होकर केवल अनुभव ही किया जा सकते हैं, वह शब्द या स्वर का रूप नहीं ले पाते और मन ही मन में रह जाते हैं तो वह अगीत कहलाते हैं।
गीत का अस्तित्व होता है, जबकि अगीत का अस्तित्व नहीं होता। ना तो उन्हें गाया जा सकता है और ना ही उन्हें प्रकट किया जा सकता है। उन्हें केवल अनुभव ही किया जा सकता है। संक्षेप में कहीं तो अगीत का आशय मन के भावों का मन में ही दबे रह जाने से होता है। जब मन के भाव उत्पन्न होकर प्रकट नहीं हो पाते हैं, तो वह अगीत बन जाते हैं। जब मन के भाव प्रकट होकर किसी काव्य आदि का स्वरूप ले लेते हैं तो वह गीत बन जाते हैं।
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