विचार/अभिमत
पटाखे मुक्त दिवाली
पटाखे मुक्त दिवाली आज के समय की मांग है, क्योंकि आज हमारा पर्यावरण संकट में है। प्रदूषण के कारण और मानव द्वारा अनेक पर्यावरण विरोधी कर्म के कारण हमारा पर्यावरण बेहद दूषित हो चला है। ऐसी स्थिति में दिवाली पर पटाखे जलाकर हम अपने पर्यावरण में और जहर घोल रहे हैं, इसलिए पटाखे मुक्त दिवाली पर्यावरण की दृष्टि से आज के समय की मांग है।
यहाँ पर यह बात भी ध्यान देने की आवश्यकता है कि केवल दिवाली पर पटाखे न जला कर ही पर्यावरण प्रदूषण से मुक्त नहीं हुआ जा सकता। साल के 365 दिन में केवल दिवाली के दिन को हम पर्यावरण के लिए दोषी मानकर अपने उत्तरदायित्व से मुक्त नहीं हो सकते। हमें पूरे साल ऐसे कार्यों से बचना होगा, जिससे प्रदूषण फैलता है, जिससे हमारा पर्यावरण खराब होता है।
यदि हम साल के एक दिन दिवाली के त्योहार पर पटाखे नहीं जलाएं और बाकी साल के 364 दिन वाहनों द्वारा, कल-कारखानों द्वारा, धूम्रपान द्वारा, विभिन्न तरह के यंत्रों के द्वारा पर्यावरण को दूषित करें तो यह बात बिल्कुल बेमानी होगी कि हम पर्यावरण की अशुद्धि के लिए सारा दोष दिवाली के ऊपर ही डाल दें।
दिवाली एक खुशी का त्यौहार है। जब दिवाली पर पटाखे चलाने का चलन चला था तो वह अपने खुशी को व्यक्त करने के लिए चला था। उस समय पर्यावरण इतना प्रदूषित नहीं होता था और ना ही दिवाली पर पटाखे जलाने से ही पर्यावरण प्रदूषित हुआ है। मानव की और दूसरी हरकतों के कारण ही पर्यावरण प्रदूषण फैलता गया और दिवाली पर पटाखे जलाने से प्रदूषण में कुछ दिनों के लिए और बढ़ोतरी हो जाती थी।
पटाखे मुक्त दिवाली एक सार्थक प्रयास है लेकिन हमें यह सार्थक प्रयास पूरे साल करना होगा ना कि केवल एक दिन दिवाली के दिन पटाखे ना जलाकर हम पर्यावरण को स्वच्छ नहीं कर सकते। हमें पूरे साल सतत रूप से अपने पर्यावरण के हित के लिए कार्य करने होंगे, तभी पटाखे मुक्त दिवाली सार्थक है, नहीं तो इसका कोई लाभ नहीं। आजकल का ट्रेंड चल गया है कि हम पटाखे मुक्त दिवाली के बारे में जोर-जोर से कैंपेन चलते हैं, लेकिन बाकी साल के 364 दिन ऐसे सारे कार्य करते हैं, जिससे प्रदूषण खूब हो। हमें इस पाखंड से मुक्ति पानी होगी। तभी पटाखे मुक्त दिवाली का सार्थक अर्थ होगा।
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