यशोधर बाबू की पत्नी समय के साथ खुद को ढाल पाने में सक्षम होती है, लेकिन यशोधर बाबू ऐसा नहीं कर पाते क्योंकि यशोधर बाबू परंपराओं वाले वातावरण में पले-बढ़े व्यक्ति थे। वह अपनी परंपराओं को पकड़ कर जीने वाले व्यक्ति थे। उनके ख्यालात पारंपरिक और पुराने थे। वह अपनी परंपराओं को चाह कर भी छोड़ पाने में असमर्थ थे।
बचपन में ही अपनी माता-पिता का निधन हो जाने के कारण उन पर जिम्मेदारियों का बोझ समय से पहले ही आ गया था। इस कारण वे समय से पहले ही परिपक्व बन गए थे। उनके स्वभाव में गंभीरता आ गई थी।
उसके अलावा किशनदास के संपर्क में आकर किशन दा के व्यक्तित्व का भी उन पर गहरा प्रभाव पड़ा था। उन्होंने किशन दा को अपना आदर्श बनाया जो स्वयं परंपराओं का पालन करना करने वाले व्यक्ति थे। यशोधर बाबू ने अपना अधिकतर समय किशनदास के साथ ही बिताया इसीलिए निश्चित और नियमित जीवनशैली जीने के आदी हो गए थे।
उनकी पत्नी अपनी संतानों के साथ रही थी। उस पर किसी व्यक्ति का प्रभाव नही था। इसीलिए उसने अपने और अपने बच्चों के अनुसार शीघ्र ही ढाल लिया। वह अपनी संतान में ही अपना सुख देखती थी। यशोधर बाबू ने अपनी परंपराओं का पालन करने को प्राथमिकता देते थे। इसीलिए वह अपनी संतान के अनुसार और समय के अनुसार स्वयं को नहीं ढाल पाए।
सिल्वर वेडिंग
‘सिल्वर वेडिंग’ पाठ जोकि ‘मनोहर श्याम जोशी’ द्वारा लिखा गया है। इस पाठ के माध्यम से लेखक ने दो पीढ़ियों के बीच विचारों के टकराव को लेकर संघर्ष विचारों के टकराव के संघर्ष के बारे में वर्णन किया है। कहानी के मुख्य पात्र यशोधर बाबू पुरानी पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करते हैं, जबकि उनकी संताने नई पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करती हैं। दोनों पीढ़ियां अपने हिसाब से जीना चाहती हैं।
पाठ संदर्भ सिल्वर वेडिंग – मनोहर श्याम जोशी (कक्षा – 12, पाठ – 1, वितान)
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