काट अन्ध-उर के बन्धन-स्तर वहा जननि, ज्योतिर्मय निर्झर, कलुष-भेद तम-हर, प्रकाश भर जगमग जग कर दे! इन पंक्तियों का भावार्थ बताएं।

काट अन्ध-उर के बन्धन-स्तर
वहा जननि, ज्योतिर्मय निर्झर,
कलुष-भेद तम-हर, प्रकाश भर
जगमग जग कर दे!

संदर्भ : ये पंक्तिया महाकवि ‘सूर्यकांत त्रिपाठी निराला’ द्वारा रचित ‘वर दे वीणा-वादिनी वर दे’ नामक कविता की पंक्तियां हैं। इन पंक्तियों और पूरी कविता में कवि निराला जी ज्ञान की देवी माँ सरस्वती की वंदना की है और उनसे सभी की अज्ञानता के अंधकार को दूर करने की प्रार्थना की है।

भावार्थ : महाकवि निराला कहते हैं कि हे माँ सरस्वती! हे वीणा वादिनी! आप हम सभी अज्ञानियों को अज्ञानता के बंधन से मुक्त कर दो और हमारी अज्ञानता के अंधकार को मिटाकर हमारे अंदर ज्ञान के प्रकाश को भर दो। हमारे अंदर जितने भी दोष, पाप, अहंकार, अज्ञानता आदि है, तुम उन्हें अपने प्रकाश के तेज से नष्ट कर दो और अपने ज्ञान रूपी प्रकाश से पूरे संसार को आलोकित कर दो।

पूरी कविता इस प्रकार है…

वर दे, वीणावादिनि वर दे!
प्रिय स्वतंत्र-रव अमृत-मंत्र नव
        भारत में भर दे!

काट अंध-उर के बंधन-स्तर
बहा जननि, ज्योतिर्मय निर्झर;
कलुष-भेद-तम हर प्रकाश भर
        जगमग जग कर दे!

नव गति, नव लय, ताल-छंद नव
नवल कंठ, नव जलद-मन्द्ररव;
नव नभ के नव विहग-वृंद को
        नव पर, नव स्वर दे!

वर दे, वीणावादिनि वर दे।

पूरी कविता का भावार्थ

भावार्थ : कवि निराला कहते हैं कि है वीणादायिनी माँ सरस्वती! आप हमें अज्ञानता के बंधनों से मुक्त कर दो और हमारे अंदर  व्याप्ता अज्ञानता के अंधकार को मिटाकर ज्ञान का प्रकाश आलोकित कर दो। आप हमें ऐसा वर प्रदान करो जिससे हमारे भारत देश के सभी नागरिकों में स्वतंत्रता की भावना उत्पन्न हो, वह परतंत्रता के बंधनों से मुक्त हों।

हे वीणावादिनी माँ सरस्वती! आप हम सभी भारतवासियों के अंधकार को दूर करो और हमारे हृदय में ज्ञान का प्रकाश भर दोय़ हमारे अंदर जितने भी क्लेश रूपी दोष और अज्ञानता है। उन्हें पूरी तरह नष्ट कर दो। हमारे केवल हमारे हृदय को ही नहीं बल्कि इस पूरे संसार को ज्ञान के प्रकाश से आलोकित कर दो।

कवि निराला कहते हैं कि हे माँ सरस्वती! हम सभी भारतवासियों की निरंतर उन्नति हो, हम नए उत्साह से भरें। हमारे जीवन में नए गीतों का आगमन हो। हम मुक्त कंठ होकर अपने जीवन के राग को गाएं। हम अपने जीवन को नई गति प्रदान करें। हम अपने जीवन  नवीन स्वर और बादलों के समान गंभीर स्वरूप पाएं। हम नए नवेले आकाश में स्वतंत्र और स्वच्छंद भाव से चहचहाते हुए पक्षियों की भांति उड़ें हमें ऐसे नए पंख प्रदान करो।

टिप्पणी : यहाँ पर कवि का आकाश में उड़ने से तात्पर्य जीवन रूपी आकाश में अपने जीवन को जीने की कला से है।


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