सही जवाब होगा…
(ख) बगुला
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व्याख्या
‘चंद्रगहना से लौटती बेर’ कविता में शोषक वर्ग का प्रतीक ‘बगुला’ है।
‘चंद्रगहना से लौटती बेर’ कविता केदारनाथ अग्रवाल द्वारा लिखी गई कविता है। इस कविता में बगल शोषक वर्ग का प्रतीक है वह समाज के ढोंगी लोगों का भी प्रतीक है, जो ढोंगी होने के साथ-साथ शोषण भी करते हैं। वह ऊपर से तो शरीफ होने का दिखावा करते हैं लेकिन उनका आचरण कपट भरा होता है । वह शराफत का दिखावा करके शोषण करने के अवसर की तलाश मे रहते हैं।
जिस तरह बगुला तालाब के बीच में स्थिर खड़ा रहकर ऐसा दर्शाने का प्रयत्न करता है कि वह एक संत के समान है लेकिन मौका मिलने पर वह तालाब की मछलियों को खा जाता है। उसी तरह समाज के कुछ लोग भी ऐसे ही ढोंगी होते हैं, जो शरीफ होने का दिखावा करते हैं लेकिन उनके अंदर कपट भरा होता है और मौका मिलने पर वह कमजोर और असहाय लोगों का शोषण करने से नहीं चूकते।
इस कविता में बगुला धूर्त, क्रूर और शोषक वर्ग का प्रतीक है जो दिखावटी रूप से शांत और निर्दोष दिखता है, लेकिन वास्तव में वह छल-कपट से भरा होता है। वह मछलियों (शोषित वर्ग) को अपना शिकार बनाता है।
बगुले का चित्रण एक ऐसे व्यक्ति या वर्ग के रूप में किया गया है जो दिखने में भले और शांत लगते हैं, लेकिन उनका असली चरित्र शोषणकारी होता है। वे अपने स्वार्थ के लिए दूसरों का शोषण करते हैं।
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