कबीर अपना चरखा चलाते हुए भजन इसलिए गाते रहते थे क्योंकि वह कर्म और ईश्वर चिंतन दोनों कार्यों को साथ करने में यकीन रखते थे। कबीर ईश्वर की भक्ति को महत्व देते थे और ईश्वर के निराकार रूप को मानते थे। लेकिन वह केवल ईश्वर चिंतन में ही अपना समय व्यतीत नहीं करते थे वह कर्म को भी उतना ही महत्व देते थे।
उनके जीवन में ज्ञान और कर्म दोनों का समान महत्व था। वह कर्म करने के लिए कोई उद्यम करते रहते थे और निरंतर चरखा चलाते रहते थे और ईश्वर के भजन भी गाते रहते थे। वह कर्म साधना करने के साथ-साथ ईश्वर की ध्यान साधना भी करते रहते थे। वे समय का सदुपयोग करते थे। उनके अनुसार ईश्वर को याद करने का कोई विशिष्ट समय नहीं होता बल्कि जब चाहों और हर समय ईश्वर को याद किया जा सकता है।
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