कठिन रास्ते होने की बात सुनकर भी जवाहरलाल सफर के लिए तैयार इसलिए हो गए, क्योंकि वह अमरनाथ की गुफा के को देखने के लिए उत्सुक थे। जोजिला पास से आगे निकल कर जब जवाहरलाल मातायन पहुंचे तो उनके साथ चल रहे नवयुवक कुली ने उन्हें बताया कि आगे अमरनाथ की गुफा है, लेकिन रास्ता बहुत ही कठिन है। तब जवाहरलाल ने अपने चचेरे भाई यो दृष्टि डाली जो कि उनके साथ कश्मीर घूमने के लिए आये थे। वह अमरनाथ की गुफा देखना चाहते थे। उन्हें रास्ते की मुश्किलों के बारे में पता था लेकिन फिर भी वह आगे जाने के लिए तैयार हो गए क्योंकि वे कठिनता से नही घबराते थे। उन्हें अमरनाथ गुफा का दर्शन भी करना था।
‘चुनौती हिमालय की’ नामक पाठ जो कि सुरेखा पणंदीकर द्वारा लिखा गया है, उसमें जवाहरलाल नेहरू की कश्मीर यात्रा के बारे में वर्णन किया गया है, जिसमें वह अपने चचेरे भाई के साथ कश्मीर घूमने निकले थे और अमरनाथ गुफा जाते समय रास्ते में खाई में गिरते गिरते बचे। आगे का रास्ता बेहद कठिन होने के कारण वह अमरनाथ की गुफा नहीं पहुंच पाए और उन्हें आधे रास्ते से ही वापस आना पड़ा।
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आशय स्पष्ट कीजिये- भाई-भाई मिल रहें सदा ही टूटे कभी न नाता, जय-जय भारत माता।