‘विप्लव का वीर’ क्रांति रूपी बादलों को कहा गया है।
‘सूर्यकांत त्रिपाठी निराला’ ने अपनी कविता ‘बादल राग’ में बादलों को क्रांति का प्रतीक बनाकर उन्हें विप्लव का वीर कहा है। विप्लव का अर्थ क्रांति से होता है, इसलिए उन्हें क्रांति रूपी बादल कहा गया है, जो समाज में एक क्रांति लाते हैं इसलिए उन्हें विप्लव का वीर कहकर संबोधित किया है।
‘बादल राग’ कविता में कवि ने बादलों को समाज में कमजोर एवं वंचित लोगों के प्रतिनिधि के रूप में चिन्हित किया है। किसी भी समाज में कोई भी क्रांति लाने वाले कमजोर एवं वंचित वर्ग के लोग ही होते हैं। जब शोषकों द्वारा किया गया शोषण अपने चरम पर पहुंच जाता है, तब शोषक शोषित किया जाने वाला वर्ग कमजोर वंचित वर्ग उठ खड़ा होता है और एक नई क्रांति का आगमन होता है। यह क्रांति बिल्कुल उसी तरह है, जिस तरह सूर्य की प्रचंड गर्मी से त्रस्त किसानों तथा सामान्य ज्ञान के जीवन में बादल शीतलता भरते हैं और एक नई क्रांति लाते हैं, उसी तरह समाज के कमजोर वर्ग के लोग अत्याचार के विरुद्ध उठ खड़े होते हैं और बादलों की तरह ही क्रांति लाते हैं इसलिए कवि ने विप्लव का वीर बादलों को कहा है, जो कि समाज के कमोजर-वंचित वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हैं।
कविता की पंक्तियाँ इस प्रकार हैं….
जीर्ण बाहु, है शीर्ण शरीर,
तुझे बुलाता कृषक अधीर,
ऐ विप्लव के वीर!
चूस लिया है उसका सार,
हाड़-मात्र ही है आधार,
ऐ जीवन के पारावार!
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