‘अनोखी हड्डी’ पाठ का सारांश लिखिए।

‘अनोखी हड्डी’ कहानी भीष्म साहनी द्वारा लिखित एक प्रेरणादायक कहानी है, जो हमें यह सिखलाती है कि कामनाओं का कोई अंत नहीं है। जितनी हम अपनी कामना को पूरा करने की चेष्टा करेंगे। हमारी कामनाएं उतनी ही अधिक बढ़ती जाएंगी।

मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु उसका अहंकार है। अपने शक्ति के अहंकार में आकर मनुष्य अपने विवेक को खो बैठता है और अहंकार में मद में चूर होकर अपनी शक्ति का दुरुपयोग करने लगता है। अंत में जब उसे ठोकर लगती है, तब उसे अकल आती है। यदि वह समय रहते नहीं समझेगा तो उसका यही अहंकार उसे लेट डूबेगा।

‘अनोखी हड्डी’ पाठ का सारांश

सारांश

अनोखी हड्डी पाठ में उदयगिरि नमक के एक प्रतापी राजा की कहानी है। जिसने युद्ध में अनेक राज्यों को जीता था फिर भी सत्ता के प्रति उसका लालच बढ़ता ही गया। एक दिन एक सुंदर प्रदेश को देखकर राजा ने उसे प्रदेश पर अपना अधिकार जमाने के लिए आक्रमण कर दिया। उसे सुंदर प्रदेश के निर्दोष निवासी मारे जाने लगे और उनके खून से प्रदेश की भूमि रंग गई।

एक दिन राजा के युद्ध के बीच में राजा से मिलने एक बूढ़ा व्यक्ति आया। उस बूढ़े व्यक्ति ने राजा उदयगिरि से कुछ दान मांगने की इच्छा प्रकट की। राजा द्वारा दान की स्वीकृति देने पर बूढ़े व्यक्ति ने एक हड्डी देते हुए कहा कि इस हड्डी के वजन के बराबर सोना उसे दान दे दें। राजा ने जब हड्डी को तोलकर स्वर्ण मुद्राएं देनी चाही। तो हड्डी का वजन स्वर्ण मुद्राओं से ज्यादा निकला। राजा तराजू में जितनी भी स्वर्ण मुद्राएं डालता। हड्डी का वजन हमेशा ज्यादा निकलता। ढेर सारी स्वर्ण मुद्राएं डालने के बावजूद तराजू के पलड़े में हड्डी भारी रही।

राजा आश्चर्यचकित रह गया। बूढ़े व्यक्ति से कारण पूछने पर बूढ़े व्यक्ति ने बताया कि यह कामनाओं की हड्डी है। कामनाओं की हड्डी की भूख कभी शांत नहीं होती। जितनी कामनाओं की पूर्ति होगी उतनी ही अधिक कामनाएं बढ़ती जाएंगी। बिल्कुल उसी तरह जिस तरह आपकी अधिक से अधिक राज्यों को जीतने की कामना बढ़ती ही जा रही है।

राजा को बात समझ में आ गई थी। बूढ़े व्यक्ति की बात के पीछे छिपे अर्थ को समझ कर राजा को अपने लालच पर पछतावा हुआ। उसने उसे छोटे से प्रदेश पर अधिकार जमाने का इरादा त्याग दिया और अपनी सेना को वापस लेकर अपने राज्य को लौट गया।

कहानी का विस्तृत वर्णन

बहुत समय पहले स्वर्ण देश नामक राज्य में महाराज उदयगिरि का शासन था। वह बहुत प्रतापी राजा थे और उन्होंने अपने विजय की पताका फहराकर बहुत से राज्यों को युद्ध में हराकर उन्हें जीतआ। इस तरह 50 वर्ष की आयु तक पहुंचने-पहुँचते वे महाराजाधिराज हो गए थे। उन्हें उन्होंने बड़े-बड़े विशाल राज्यों को अपने अधिकार क्षेत्र में ले लिया था।

एक बार जब है जंगल में शिकार करने गए तो रास्ता भटक गए और अपने साथियों से बिछड़ गए। रास्ता भटकते भटकते वह एक विशालकाय पर्वत के सामने जा पहुंचे। उस सुंदर से पर्वत की तलहटी में एक सुंदर शांत झील थी। चारों तरफ सुंदर प्राकृतिक वातावरण था। इतने अद्भुत सौंदर्य को देखकर महाराजा उदयगिरि मंत्र मुग्ध हो गए। तभी उनके साथी ढूंढते हुए उनके पास आ पहुंचे। महाराज उदयगिरि ने कहा कि मेरे राज्य में इतना सुंदर प्रदेश भी है, यह मुझे आज तक नहीं मालूम था। तब महाराज के मंत्री ने बताया कि महाराज यह प्रदेश आपकी सीमा में नहीं आता बल्कि जहाँ से यह प्रदेश शुरू होता है, वहाँ आपके राज्य की सीमा समाप्त हो जाती है। तब उदयगिरि ने कहा कि ऐसा सुंदर प्रदेश मेरे राज्य में नहीं है, यह अचंभे वाली बात है। मैं कल से ही इस प्रदेश पर जीतने के लिए चढ़ाई करता हूँ। इस तरह की घोषणा करके अगले दिन ही महाराज ने उसे सुंदर प्रदेश पर चढ़ाई कर दी और वहां के निवासियों पर आक्रमण कर दिया।

धीरे-धीरे उदयगिरि के सैनिक कुछ छोटे से प्रदेश पर अपना कब्जा जमाने लगे। उसे प्रदेश के निर्दोष निवासी निरंतर मारे जा रहे थे। उनके खून से वही सुंदर झील लाल हो रही थी, जिस झील में उसे प्रदेश के निवासी कभी मछुआरे बनाकर मछलियां पकड़ते थे, जो उनके लिए जीवनदायिनी थी।

एक दिन महाराज अपने युद्ध के शिविर में बैठे थे। तभी एक बूढ़ा आदमी उनसे मिलने आया और उनसे दान लेने की इच्छा प्रकट की। बूढ़े आदमी ने कहा कि मेरे पास एक छोटी सी हड्डी है, आप इस हड्डी के वजन के बराबर सोना मुझे दान दे देते हो तो आपकी बड़ी कृपा होगी। महाराज उदयगिरि राजी हो गए और उन्होंने तराजू में हड्डी को तोलकर उसके वजन के बराबर स्वर्ण मुद्रा देने का आदेश दिया। लेकिन जैसे ही तराजू में हड्डी रखकर स्वर्ण मुद्राएं तोली जाती, हड्डी हमेशा भारी निकलती। राजा ने अपने सैनिकों को आदेश देकर अधिक से अधिक स्वर्ण मुद्राएं तराजू में डाली, लेकिन वह हमेशा हड्डी के वजन से हल्की निकली।

अब राजा आश्चर्यचकित हो गए कि यह छोटी सी हड्डी इतनी सारी स्वर्ण मुद्राओं से भारी कैसे हैं। अब उन्हें बेहद शर्मिंदगी महसूस हो रही थी। उन्होंने बूढ़े आदमी की मांग के अनुसार दान नही दे पा रहे। हड्डी इतने बजनी होने का कारण पूछने पर बूढ़े आदमी ने बताया कि यह हड्डी कामनाओं की हड्डी है। इसमें कामनाओं का वजन है, जो हमेशा बढ़ता ही जाता है। इस कामना की हड्डी की भूख को जितना शांत करोगे, उसकी भूख उतनी ही बढ़ती जाएगी। इसीलिए आपकी स्वर्ण मुद्राएं भी इस कामना की हड्डी के वजन को पूरा नहीं कर सकती।

अब राजा को सारी बात समझ में आ गई थी। उन्हें समझ में आ गया था कि बूढ़े व्यक्ति ने उनकी सत्ता लोलुपता पर कटाक्ष करने के लिए ही हड्डी का सहारा लिया था। उन्हें अपने किए पर शर्मिंदगी हो रही होने लगी। उन्होंने अगले दिन ही उस छोटे से प्रदेश से अपनी सेनाएं वापस लौटने का हुक्म दिया और अगले दिन ही राजा सहित उस प्रदेश से वापस लौट गए।

निष्कर्ष

इस कहानी में हमें बहुत अधिक लालच ना करने की सीख मिलती है। बहुत अधिक लालच हमें सदैव पतन की ओर ले जाता है।


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