बच्चे ऊँच-नीच का बंधन क्यों तोड़ना चाहते हैं?

कवि द्वारकाप्रसाद माहेश्वरी द्वारा रचित कविता ‘इतना ऊँचे उठो कि जितना उठा गगन है’ में बच्चे ऊँच-नीच के बंधन को इसलिए तोड़ना चाहते हैं क्योंकि बच्चे ऊँच-नीच का बंधन इसलिए तोड़ना चाहते हैं क्योंकि वे समानता, समरसता, और स्वतंत्रता के मूल्य को समझते हैं और उसे जीना चाहते हैं।
कविता में कहा गया है कि दुनिया को एक समान दृष्टि से देखा जाए और धरा को समता की भाव वृष्टि से सिंचित किया जाए। बच्चे स्वाभाविक रूप से निष्कपट होते हैं और सभी को समान दृष्टि से देखना चाहते हैं। वे भेदभाव और असमानता को नहीं समझते और उन्हें मिटाना चाहते हैं।
कविता में जाति-भेद, धर्म-वेश और रंग-द्वेष की ज्वालाओं से जलते जग का वर्णन है। बच्चे इन भेदभावों को समाप्त करना चाहते हैं क्योंकि वे सभी को समान मानते हैं और किसी भी प्रकार के भेदभाव को स्वीकार नहीं करते।

पूरी कविता इस प्रकार है…

इतने ऊँचे उठो कि जितना उठा गगन है।

देखो इस सारी दुनिया को एक दृष्टि से
सिंचित करो धरा, समता की भाव वृष्टि से
जाति भेद की, धर्म-वेश की
काले गोरे रंग-द्वेष की
ज्वालाओं से जलते जग में
इतने शीतल बहो कि जितना मलय पवन है॥

नये हाथ से, वर्तमान का रूप सँवारो
नयी तूलिका से चित्रों के रंग उभारो
नये राग को नूतन स्वर दो
भाषा को नूतन अक्षर दो
युग की नयी मूर्ति-रचना में
इतने मौलिक बनो कि जितना स्वयं सृजन है॥

लो अतीत से उतना ही जितना पोषक है
जीर्ण-शीर्ण का मोह मृत्यु का ही द्योतक है
तोड़ो बन्धन, रुके न चिन्तन
गति, जीवन का सत्य चिरन्तन
धारा के शाश्वत प्रवाह में
इतने गतिमय बनो कि जितना परिवर्तन है।

चाह रहे हम इस धरती को स्वर्ग बनाना
अगर कहीं हो स्वर्ग, उसे धरती पर लाना
सूरज, चाँद, चाँदनी, तारे
सब हैं प्रतिपल साथ हमारे
दो कुरूप को रूप सलोना
इतने सुन्दर बनो कि जितना आकर्षण है॥


Other questions

क्या माँ के बिना बच्चे का उचित विकास हो सकता है ? क्यों? सोचकर लिखिए

धरती माता ऊँच-नीच का भेद क्यों नहीं करती ?

Related Questions

Comments

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Recent Questions