जब पंगत बैठ जाती तो बाबूजी भी धीरे-धीरे से आकर जीमने को बैठ जाते। ‘माता के आँचल’ पाठ में लेखक ने जब अपने बचपन की इस घटना का वर्णन किया है तो इस घटना से लेखक के पिता का बच्चों के साथ इस तरह खेलना बिल्कुल उचित था।
हमारा विचार इसके पक्ष मे रहेगा। माता-पिता को अपने बच्चों के साथ मित्रवत व्यवहार करना चाहिए ताकि बच्चे अपने माता पिता के साथ सहज रूप से रहे और उनके साथ अपनी हर तरह की परेशानी को बता सकें। माता और पिता तथा संतान के बीच सरल-सहज आत्मीय संबंध होंगे तो बच्चा अपने मन की कोई भी बात माता को आसनी बता पाएगा और उसका मानसिक और शारीरिक विकास भी सकारात्मक रूप से हो पाएगा।
अक्सर माता-पिता अपने बच्चों के साथ बेहद सख्ती से पेश आते हैं, जिस कारण बच्चे माता-पिता के सामने खुल नहीं पाते और वो अपनी बहुत सी बातें अपने माता-पिता से छुपाते हैं। इससे वे अपने अंदर ही कुंठा पालते रहते हैं जो उनके विकास पर नकारात्मक असर डालती है।
यहाँ पर ‘माता के आँचल’ पाठ में लेखक के पिता का अपने बेटे और उसके दोस्तों के साथ खेलने से लेखक के अंदर एक आत्मीय प्रवृत्ति विकसित हुई और वह अपने माता पिता के साथ अधिक आत्मीय संबंध स्थापित कर पाया। इसलिए हमारी दृष्टि में इस तरह का व्यवहार बिल्कुल उचित था।
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