संवाद लेखन
प्रकृति और मनुष्य के बीच संवाद
मनुष्य : (चलते-चलते) शुक्र है, एक पेड़ तो मिला अब बैठ कर आराम करता हूँ।
प्रकृति : (पेड़ के अंदर से आवाज़ आई) तुम कौन हो ? यहाँ क्या कर रहे हो।
मनुष्य : (हैरानी से इधर:उधर देखते हुए) तुम कौन हो और कहाँ हो ?
प्रकृति : (गुस्से से) मैं प्रकृति हूँ। जिस पेड़ की छाया मैं तुम बैठे हो वो मैं ही हूँ।
मनुष्य : (प्रणाम करते हुए) हे देवी! आप इतना नाराज़ क्यूँ हैं ?
प्रकृति : (और अधिक गुस्से से) नाराज़ कैसे ना होऊं। तुम मनुष्यों ने अपने स्वार्थ मुझे बहुत नुकसान पहुँचाया है। प्रकृति को पूरी तरह नष्ट करके रख दिया है। अब यहाँ क्या लेने आए हो ?
मनुष्य : (शर्मिंदा होते हुए) हे देवी! आप हमें माफ़ कर दीजिए। हम अपने किए पर बहुत शर्मिंदा हैं।
प्रकृति : हे मनुष्य ! आज तुम्हें इतने वर्षों के बाद माफ़ी माँगने का ख्याल कैसे आया ?
मनुष्य: (आँखों में आँसू) हे देवी! आज हम बहुत मुश्किल में है। आपका गुस्सा हम मनुष्यों को झेलना पड़ रहा है। चारों ओर महामारी फैल रही है। साँस लेना भी मुश्किल होता जा रहा है। बाढ़ और भू:स्खलन होता आ रहा है। दुनिया पर संकट के बाद छाते जा रहे हैं।
प्रकृति : सुनो मनुष्यो ! यह सब तुम्हारे ही कर्मों का फल है। अब इसे भुगतना ही पड़ेगा। तुमने मुझे जो नुकसान पहुँचाया है, मुझे जो तकलीफ दी है तो अब मेरा गुस्सा झेलो।
मनुष्य : (घुटनों के बल बैठ कर) हे देवी ! हमें माफ़ करो। कुछ तो करो हमारे लिए। हम सब संकट में हैं।
प्रकृति : मैं कुछ नहीं कर सकती जो भी करना है वो तुम्हें ही करना होगा।
मनुष्य : (उत्सुकता से) बताइए देवी हमें क्या करना होगा जैसा आप कहोगी हम वैसा ही करेंगे।
प्रकृति : ठीक है, जाओ अधिक से अधिक पेड़-पौधे लगाओ। अवैध निर्माण बंद करो। कंक्रीट के जंगल बिछाना बंद करो। वनों और वन की संपदा से छेड़छाड़ मत करो। प्लास्टिक का इस्तेमाल बंद करो। वनों का अवैध कटाव रोको।
मनुष्य : हे देवी प्रकृति! धन्यवाद। आपने हमें समय रहते जगा दिया। हम मनुष्य आपसे वादा करते हैं कि आपके द्वारा बताए गए सुझावों पर अमल करेंगे।