संवाद लेखन
दो सहेलियों के बीच प्रिय पुस्तक के विषय में संवाद
मीरा : (दरवाज़े की घंटी की आवाज़) कौन है ? रुको ज़रा, अभी आई।
रानी : (दरवाज़ा खुलते ही) क्या बात है, दरवाज़ा खोलने में इतनी देर।
मीरा : (गले मिलते हुए) कैसी हो तुम और आज इतने समय के बाद तुम्हें मिलने की फुरसत मिल ही गई, ना कोई फोन ना कोई चिट्ठी, कहाँ हो आजकल ? तुम तो ईद का चाँद ही हो गई हो।
रानी : क्या करूँ यार आजकल कुछ दिनों से बहुत व्यस्थ थी, पहले एक महीने के लिए ससुराल गई हुई थी फिर वापस आई तो बच्चों की परीक्षाएं शुरू हो गई थी।
मीरा : (नाराजगी दिखते हुए) एक फोन तक नहीं किया तुमने, मैंने तुम्हें कितने फोन किए कितने मैसेज किए लेकिन तुम ने एक का भी जवाब नहीं दीया।
रानी : (प्यार से मनाते हुए) अच्छा बाबा अब नाराज मत हो मैं तुम्हें सारी बात बताती हूँ, पहले एक गिलास पानी तो पीला दो। दरअसल मेरा फोन गुम हो गया था इसलिए फोन नहीं कर पाई और जब से मोबाइल फोन आए हैं कोई नंबर ही याद नहीं है। आज मैं तुमसे मिलने आई हूँ और तुम्हें कुछ दिखाना भी है।
मीरा : क्या दिखाना है, जल्दी–जल्दी दिखाओ।
रानी : (बैग से कुछ निकलते हुए) मैंने तुम्हें अपने प्रिय लेखक मुंशी प्रेमचंद के बारे में बताया था। ये उनकी ही किताब है। बड़ी मुश्किल से मिली है।
मीरा : ऐसा क्या है इनकी कहानियों में, जो तुम्हें इतना पसंद है।
रानी : मुंशी प्रेमचंद जी की कहानियाँ आम जीवन से जुड़ी कहानियाँ होती हैं और बहुत ही रोचक एवं प्रेरणादायक होती हैं।
मीरा : क्या उनकी कहानियाँ सचमुच इतनी दिलचस्प होती हैं?
रानी : हाँ, बिल्कुल। तुम भी उनकी एक कहानी “दो बैलों की कथा” पढ़ना तुम्हें पता चल जाएगा।
मीरा : (बड़ी हैरानी से) क्या ! बैलों की कथा। इसमें तो बैलों के विषय में ही लिखा होगा।
रानी : अरे नहीं ! इस कहानी के माध्यम से लेखक ने किसानों और पशुओं के भावनात्मक सम्बन्धों का वर्णन किया है।
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