टूटे सुजन मनाइए, जौ टूटे सौ बार।
रहिमन फिरि फिरि पोहिए, टूटे मुक्ताहार।।
अर्थ : रहीमदास जी कहते हैं कि सज्जन व्यक्ति अर्थात जो अपने प्रिय हैं, वह कितनी बार भी रूठ जाए उन्हें मनाते रहना चाहिए। उन्हें मनाने का प्रयास करते रहना चाहिए। उनके रूठ जाने पर भी उनका साथ नहीं छोड़ना चाहिए।
बिल्कुल उसी तरह जैसे मोती की माला अगर टूट जाए तो उन मोतियों को फेक नहीं दिया जाता बल्कि वापस नए धागे में बुनकर मोतियों को पिरो दिया जाता है। इसी तरह सज्जन व्यक्तियों का मूल्य भी मोती के समान है। किसी बात पर विवाद आदि होने पर उन्हें यूँ नहीं छोड़ देना चाहिए बल्कि उन्हें मनाने का भरसक प्रयत्न करना चाहिए।
व्याख्या : इस दोहे के माध्यम से रहीम दास ने सज्जन व्यक्तियों की महत्ता स्पष्ट की है। उनका कहने का तात्पर्य यह है कि जो व्यक्ति सज्जन होते हैं, वह सदैव अनमोल होते हैं। उनका साथ कभी नहीं छोड़ना चाहिए। यदि कभी कोई ऐसी परिस्थिति आ जाए, जिस कारण वह सज्जन व्यक्ति रूठ जाएं तो उन्हें मनाने का प्रयत्न करना चाहिए। सज्जन व्यक्तियों का साथ छोड़ने से स्वयं का ही अहित होगा। इसलिये जितना संभव हो सज्जन व्यक्तियों का आदर और सम्मान करना चहिए।
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लैकै सुघरु खुरुपिया, पिय के साथ। छइबैं एक छतरिया, बरखत पाथ ।। रहीम के इस दोहे का भावार्थ लिखिए।