मधुर मधुर मेरे दीपक जल : महादेवी वर्मा (कक्षा-10 पाठ-6 हिंदी स्पर्श 2) (हल प्रश्नोत्तर) (पुराना पाठ्य क्रम)

NCERT Solutions (हल प्रश्नोत्तर)

मधुर मधुर मेरे दीपक जल : महादेवी वर्मा (कक्षा-10 पाठ-6 हिंदी स्पर्श 2)

Mahur Madhur Mere Deepak Jal : Mahadevi Verma (Class 10 Chapter 6 Hindi Sparsh 2)



मधुर मधुर मेरे दीपक जल : महादेवी वर्मा

पाठ के बारे में…

इस पाठ में हिंदी की सुप्रसिद्ध कवयित्री महादेवी वर्मा की कविता ‘मधुर-मधुर मेरे दीपक जल’ को प्रस्तुत किया गया है। इस कविता के माध्यम से कवयित्री अपने आप से जो अपेक्षाएं करती है, यदि वह पूरी हो जाए तो ना केवल उसका अपना भला होगा बल्कि हर आमजन का कितना भला हो सकता है, यह बताने का प्रयास कवयित्री ने किया है। कवयित्री के अनुसार हम सब भले ही अलग-अलग शरीर धारी हों, लेकिन हैं हम एक ही, जो हमें मनुष्य नाम की जाति के रूप में पहचान प्रदान करता है।

कवयित्री के अनुसार औरों से बतियाना, औरों को समझाना, औरों को राह सुझाना तो सभी कर ही लेते हैं लेकिन उससे ज्यादा कहीं कठिन और श्रम साध्य कार्य यह है, अपने आप को समझाना। अपने आप से बतियाना और अपने आप को सही राह पर बनाए रखने के लिए तैयार करना।



कवयित्री के बारे में…

महादेवी वर्मा हिंदी साहित्य जगत की छायावाद युग की एक प्रमुख कवयित्री रही हैं। वह छायावाद के चार प्रमुख स्तंभों में से एक प्रमुख स्तंभ रही हैं। महादेवी वर्मा का जन्म 1907 ईस्वी में उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद जिले में हुआ था। वह एक प्रसिद्ध कवयित्री और बेजोड़ लेखिका रही है। उन्होंने अनेक मर्मस्पर्शी कविताएं एवं संवेदनशील कहानियों की रचना की है। उनकी अधिकतर कहानियां उनके जीवन के संस्मरणों से संबंधित रही हैं।

महादेवी वर्मा की प्रमुख रचनाओं में रश्मि, नीहार, नीरजा, सांध्यगीत, दीपशिखा, प्रथम आयाम, अग्नि आदि के नाम प्रमुख है। इसके अलावा उन्होंने अतीत के चलचित्र, श्रंखला की कड़ियां, स्मृति की रेखाएं, पथ के साथी, मेरा परिवार और चिंतन के क्षण जैसी गद्य कृतियों की भी रचना की। उनका निधन 11 सितंबर 1987 को हुआ।



हल प्रश्नोत्तर

(क) निम्नलिखिथ प्रश्नों के उत्तर दीजिए।

प्रश्न 1 : प्रस्तुत कविता में ‘दीपक’ और ‘प्रियतम’ किसके प्रतीक हैं?

उत्तर : प्रस्तुत कविता में ‘दीपक’ ईश्वर के प्रति कवियत्री की आस्था तथा आत्मा का प्रतीक है और ‘प्रियतम’ ईश्वर का प्रतीक है। कवयित्री ने दीपक के माध्यम से ईश्वर के प्रति आस्था और आत्मा को आधार बनाया है। जबकि प्रियतम के माध्यम से वह अपने आराध्य ईश्वर को प्रतीक बनाती हैं।

कवयित्री दीपक से प्रार्थना कर रही हैं कि जीवन की प्रत्येक विषम परिस्थिति से जूझकर भी प्रसन्नतापूर्वक ज्योति फैलाए हैं, जिससे उसके प्रियतम को पाने का पथ आलोकित हो और वह उस पथ पर सहज भाव से चल सके। कवयित्री अपनी आत्मारूपी दीपक को जलाकर अपने प्रियतम यानी परमात्मा को पाने के पथ को आलोकित करना चाहती हैं।

प्रश्न 2 दीपक से किस बात का आग्रह किया जा रहा है और क्यों?

उत्तर : दीपक से इस बात का आग्रह किया जा रहा है कि वह कैसी भी परिस्थिति क्यों ना हो, कितनी भी विषम परिस्थिति क्यों ना हो, हर तरह की परिस्थिति में निरंतर जलता रहे।

कवयित्री दीपक से ऐसा आग्रह इसलिए कर रही हैं, क्योंकि दीपक के प्रकाश से उनके अपने प्रियतम को पाने का पथ आलोकित होता रहे और वह अपने प्रियतम यानि अपने आराध्य ईश्वर को पाने के मार्ग पर सहज रूप से चल सकें।

यहाँ पर कवयित्री ने दीपक को आत्मा का प्रतीक बनाया है। वह अपनी आत्मा के प्रकाश से अपने प्रियतम यानी कि ईश्वर को पाने का पथ आलोकित करना चाहती हैं। उनके अनुसार प्रियतम से उनका मिलन अर्थात ईश्वर को पाना ही उनके जीवन का सबसे बड़ा लक्ष्य है।

प्रश्न 3 : विश्व-शलभ’ दीपक के साथ क्यों जल जाना चाहता है?

उत्तर : इन पंक्तियों में विश्व-शलभ से तात्पर्य पूरे संसार से है। विश्व-शलभ यानी पूरा संसार दीपक के साथ इसलिए जल जाना चाहता है, ताकि वह अपने अंदर के अहंकार, लोभ तथा विषय विकारों आदि को मिटा सके और ईश्वर में लीन हो जाए। विश्वशलभ दीपक के साथ जलकर अपने अस्तित्व को मिटा देना चाहता है ताकि उसके अंदर ज्ञान का प्रकाश प्रज्जवलित हो और वह ईश्वर को पा सके।

कवयित्री कहती है कि जिस तरह पतंगा दीपक की लौ के प्रति समर्पित होकर उसकी आग में जलकर अपने जीवन को मिटा देता है। उसी प्रकार यह सारा संसार भी प्रभु की भक्ति में लीन होकर अपने अंदर के अहंकार, क्रोध, लोभ, मोह-माया आदि आदि को मिटा देता है ताकि उसके अंदर ज्ञान का प्रकाश जले और वह अपने प्रियतम ईश्वर को पा सके। सरल शब्दों में कहें तो संसार के लोग अपने अंदर के अहंकार को मिटाकर ज्ञान का प्रकाश प्रज्जवलित करके ईश्वर को पाना चाहते हैं, इसीलिए विश्व-शलभ दीपक के साथ जल जाता है।

 

प्रश्न 4 : आपकी दृष्टि में ‘मधुर मधुर मेरे दीपक जल’ कविता का सौंदर्य इनमें से किस पर निर्भर है −
(
क) शब्दों की आवृति पर।
(
ख) सफल बिंब अंकन पर।

उत्तर : हमारी दृष्टि में ‘मधुर-मधुर मेरे दीपक जल’ कविता का सौंदर्य शब्दों की आवृत्ति और सफल बिंब अंकन दोनों पर निर्भर है। जहाँ कवियत्री ने कविता में शब्दों की आवृत्ति से अद्भुत सौंदर्य बोध कराया है और कविता में जगह-जगह पर शब्दों की आवृत्ति कविता को विशिष्टता प्रदान कर रही है, वहीं कविता का सफल बिंबाकन भी कविता को एक अलग विशिष्टता प्रदान कर रहा है।

कवयित्री ने मधुर-मधुर, युग-युग, सिहर-सिहर, बिहँस-बिहँस जैसे शब्द युग्म के माध्यम से ‘पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार’ की छटा बिखेरी है।

कवयित्री ने इन पंक्तियों के माध्यम से बिंबों का सफल अंकन किया है। ‘मधुर मधुर मेरे दीपक जल सौरभ फैला विपुल धूप बन विश्व-शलभ सिर धुनता कह मैं, जलते नभ में देख असंख्य स्नेहनीत नित कितने दीपक विद्युत बन ले घिरता है बादल।

प्रश्न 5 : कवयित्री किसका पथ आलोकित करना चाह रही हैं?

उत्तर : कवयित्री अपने प्रियतम को पाने वाला पथ आलोकित करना चाह रही हैं ताकि उसके प्रियतम यानि परमात्मा तक पहुंचने का उनका रास्ता सरल हो जाए। कवयित्री अपनी आस्था एवं आत्मा रूपी दीपक को जलाकर अपने परमात्मा यानी प्रियतम का पथ आलोकित करना चाह रही हैं।

अपने प्रियतम यानी परमात्मा को ही पाना उनका अंतिम लक्ष्य है और वह इस पथ को आलोकित करके निरंतर उस पथ पर चलते रहना चाहती है, ताकि वह अपने प्रियतम को पा सकें। कवयित्री के कहने का भाव यह है कि उनके मन की अज्ञानता ही उनका मन का अंधकार है और वह इस अंधकार को मिटाकर देना चाहती हैं ताकि उनके अंदर ज्ञान का प्रकाश उत्पन्न हो। यह ज्ञान का प्रकाश ही ईश्वर को पाने का पथ है।

प्रश्न 6 : कवयित्री को आकाश के तारे स्नेहहीन से क्यों प्रतीत हो रहे हैं?

उत्तर : कवयित्री को आकाश के तारे स्नेहहीन से इसलिए प्रतीत हो रहे हैं क्योंकि कवयित्री को लगता है कि इन तारों में तेल समाप्त हो गया है, जिस कारण उनमें प्रकाश नहीं उत्पन्न हो रहा और यह तारे दया, प्रेम, करुणा, प्रेम जैसे भावों से रहित हैं, इसी कारण वे स्नेहहीन हो गए हैं।

कवयित्री  ने आकाश के तारे संसार के मनुष्यों के प्रतीक बनाकर प्रयोग किए हैं। कवियत्री के अनुसार संसार के मनुष्यों में दया, प्रेम, करुणा, विनम्रता, सहानुभूति जैसे गुणों का अभाव हो गया है। इसी कारण उनमें स्नेह नही दिखता। इन तारों को यानि संसार के मनुष्यों को तेल मिल जाए यानी संसार के सभी मनुष्य प्रेम एवं सौहार्द की भावना से रहे तो उनके अंदर स्वतः ही स्नेह फूट पड़ेगा।

 

प्रश्न 7 : पतंगा अपने क्षोभ को किस प्रकार व्यक्त कर रहा है?

उत्तर : पतंगा अपने सिर को धुनकर अपना क्षोभ व्यक्त कर रहा है। पतंगा दीपक की लौ में जलकर अपने अस्तित्व को मिटा देना चाहता है, क्योंकि वह दीपक से परम स्नेह करता है और उसके प्रति पूरी तरह समर्पित होकर स्वयं के अस्तित्व को उसमें ही विलीन कर देना चाहता है। जब वह अपने इस प्रयास में सफल नहीं हो पाता तो वह अपना सिर धुन-धुन कर अपना क्षोभ व्यक्त कर रहा है। इसी तरह की स्थिति मनुष्य के साथ भी है।

मनुष्य अपने अहंकार को त्याग कर परमात्मा में स्वयं को विलीन कर देना चाहता है। लेकिन अनेक कारणों से वह अपने अहंकार का त्याग नहीं कर पाता और ईश्वर को पाने में विफल रहता है। इस तरह वह भी जब ईश्वर को पाने मे विफल रहता है, तो ईश्वर को शिकायत करके अपना क्षोब व्यक्त करता है जबकि वास्तव में गलती उसी की होती है, क्योंकि उसने अपने अंदर के अहंकार तो मिटाया ही नही है।

प्रश्न 8 : मधुर-मधुर, पुलक-पुलक, सिहर-सिहर और विहँस-विहँस, कवयित्री ने दीपक को हर बार अलग-अलग तरह से जलने को क्यों कहा है? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर : कवयित्री ने मधुर-मधुर, पुलक-पुलक, सिहर-सिहर और विहँस-विहँस इन अलग-अलग तरीकों से दीपक को बार-बार जलने के लिए इसलिए कहा है क्योंकि कवयित्री यह चाहती है कि ये दीपक हर परिस्थिति में निरंतर अपनी लो जलाए रखें। कवयित्री चाहती है कि किसी भी तरह की परिस्थिति में भी दीपक की लौ बुझने ना पाए। वह प्रभु के प्रति अपनी आस्था और अपनी आत्मा का दीपक निरंतर जलाए रखना चाहती है, चाहे कैसी भी परिस्थिति क्यों ना हो। यदि कवयित्री की आस्था और आत्मा का ये दीपक हर परिस्थिति में जलता रहेगा तो कवयित्री को परमात्मा को पाने का पथ हमेशा आलोकित रहेगा और वह निरंतर इस पथ पर आगे बढ़ती रहेगी। इसीलिए कवयित्री ने दीपक को हर बार बार अलग-अलग रूप में जलने को कहा है।

प्रश्न 9 : नीचे दी गई काव्य-पंक्तियों को पढ़िए और प्रश्नों के उत्तर दीजिए −

जलते नभ में देख असंख्यक, स्नेहहीन नित कितने दीपक; जलमय सागर का उर जलता, विद्युत ले घिरता है बादल! विहँस विहँस मेरे दीपक जल!
(क) ‘स्नेहहीन दीपक’ से क्या तात्पर्य है?
(ख) सागर को ‘जलमय’ कहने का क्या अभिप्राय है और उसका हृदय क्यों जलता है?
(ग) बादलों की क्या विशेषता बताई गई है?
(
घ) कवयित्री दीपक को ‘विहँस विहँस’ जलने के लिए क्यों कह रही हैं?
उत्तर : (क) ‘स्नेहहीन दीपक’ से क्या तात्पर्य है?

उत्तर :  स्नेहहीन दीपक से तात्पर्य कांतिहीन दीपक से है अर्थात बिना तेल का दीपक। कवयित्री कहती हैं कि ऐसा दीपक जिसमें स्नेह रूपी तेल नही है, जिसके अंदर प्रभु के प्रति भक्ति नहीं है। ऐसा दीपक स्नेहहीन दीपक है।  यह बात कवयित्री ने उस व्यक्ति के लिए कही है, जिसके मन में स्नेह, करुणा, दया, प्रभु-भक्ति  आदि भाव नहीं होते।

(ख) सागर को ‘जलमय’ कहने का क्या अभिप्राय है और उसका हृदय क्यों जलता है?

उत्तर : सागर को जलमय कहने का अभिप्राय यह है कि यह लोग सांसारिक सुख-वैभव से तो भरपूर है परंतु सुख समृद्धि में भी यह लोग आपसी ईर्ष्या, द्वेष और घृणा के भाव के कारण जल रहे हैं। ऐसे व्यक्ति सांसारिक विषय-वासनाओं के कारण जल रहे हैं और उन्हीं के बीच में फंसे हुए हैं, इससे उनके अंदर आध्यात्मिक ज्योति नही जल नहीं पा रही और उनका हृदय तो केवल सांसारिक विकारों के कारण ही जल रहा है।

(ग) बादलों की क्या विशेषता बताई गई है?

उत्तर : बादलों की विशेषता कवयित्री ने ये बताई है, कि जिस तरह बादल अपने जल के द्वारा धरती को शीतल और हरा-भरा कर देते हैं और उनमें पैदा होने वाली बिजली पलभर के लिए चमक कर चारों तरफ प्रकाश फैला देती है, उसी तरह इस संसार में कुछ महा प्रतिभाशाली लोग कुछ समय के लिए अपने प्रतिभा का प्रकाश संसार में बिखेकर संसार को कुछ समय के लिए आलोकित कर देते हैं और फिर विलीन हो जाते हैं।

(घ) कवयित्री दीपक को ‘विहँस विहँस’ जलने के लिए क्यों कह रही हैं?

उत्तर : कवयित्री ने विहँस-विहँस कर जलने की बात इसलिए है क्योंकि वह चाहती है की यह दीपक निरंतर चलता रहे और किसी भी तरह की विषम परिस्थिति क्यों ना हों यानी उसे किसी भी विषम परिस्थिति में बुझना नहीं है, बल्कि दूसरों को प्रकाश पहुँचा कर उसे राह दिखाना है।

 

प्रश्न 10 : क्या मीराबाई और आधुनिक मीरा ‘महादेवी वर्मा’ इन दोनों ने अपने-अपने आराध्य देव से मिलने कि लिए जो युक्तियाँ अपनाई हैं, उनमें आपको कुछ समानता या अतंर प्रतीत होता है? अपने विचार प्रकट कीजिए?

उत्तर : मीराबाई और आधुनिक मीरा महादेवी वर्मा इन दोनों ने अपने-अपने आराध्य देव से मिलने के लिए जो युक्तियां अपना ही है उनमें कुछ तो समानता है लेकिन अधिकतर में असमानता ही है। इसका मुख्य कारण यह है कि जहाँ मीराबाई ने अपने आराध्य के  सगुण रूप की आराधना की है, वही महादेवी वर्मा ने अपने आराध्य के निर्गुण रूप की आराधना की है। मीराबाई ने कृष्ण भगवान के सुंदर रूप को अपनाकर उनकी आराधना उपासना । वहश्री कृष्ण के रूप सौंदर्य पर मोहित है। वह श्री कृष्ण से मिलने के लिए किसी भी हद तक जाने के लिए तैयार है वह उनके घर में बाग-बगीचे लगाने के लिए तैयार हैं। वह श्रीकृष्ण के घर में चाकरी करने तक के लिए तैयार है। ताकि रोज श्रीकृष्ण के सुंदर मनोहारी रूप का दर्शन कर सकें। इसके विपरीत महादेवी वर्मा ने निराकार ब्रह्मा को उपासना का आधार बनाया है।दोनों में समानता यह है कि दोनों अपने अपने आराध्य की अन्यतम भक्त हैं और अपने आराध्य को पाने के लिए किसी भी सीमा तक जाने के लिए तैयार है। वह ऐसा कुछ भी करने के लिए तैयार हैं जो उनको उनके आराध्य तक पहुंचाने में मदद करें।

(ख) निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिए।

प्रश्न 1 : दे प्रकाश का सिंधु अपरिमित, तेरे जीवन का अणु गल गल!

भाव : तेरे जीवन का अणु गल गल!इन पंक्तियों के माध्यम से कवयित्री ने  दीपक को निरंतर जलते रहने का संदेश दिया है और कहा है कि वह अपने कण-कण को जला दे, गला दे और इस संसार को अपने प्रकाश से आलोकित कर दे। वह सागर की भांति स्वयं को विस्तृत रूप से फैला दें ताकि उसके प्रकाश के आलोक से संसार के सभी लोग उसका लाभ उठा सकें।

प्रश्न 2 : युग-युग प्रतिदिन प्रतिक्षण प्रतिपल, प्रियतम का पथ आलोकित कर!

भाव : इन पंक्तियों के माध्यम से कवयित्री ने दीपक को निरंतर हर-पल, हर-समय जलते रहने के लिए कहा है। कवयित्री के कहने का भाव यह है कि उसके अंदर आस्था रूपी ज्ञान का दीपक हर-पल, हर-क्षण, हर-दिन निरंतर जलता रहे और युगों-युगों तक अपने प्रकाश से आलोकित करता रहे। कवयित्री चाहती है कि जब तक उसका हृदय रूपी दीपक निरंतर जलता रहेगा तभी उसके मन में व्याप्त अंधकार नष्ट होगा और वह अपने प्रियतम रूपी ईश्वर को पाने के आलोकित पथ पर चल सकेगी।

प्रश्न 3 : मृदुल मोम सा घुल रे मृदु तन!

भाव : इस पंक्ति के माध्यम से कवयित्री ने अपने समर्पण भाव को प्रदर्शित किया है। कवयित्री का कहना है कि इस कोमल तन को मोम की तरह एकदम भूल जाना होगा, तभी वो अपने प्रियतम यानि ईश्वर को पा सकेगी। कवयित्री के कहने का भाव है कि ईश्वर को पाना आसान नहीं है। ईश्वर को पाने के लिए कठोर तपस्या, कठोर साधना करनी पड़ेगी। ईश्वर के चरणों में अपना सब कुछ अर्पित कर देना होगा यानी स्वयं को मिटा देना होगा, मोम की तरह गला देना होगा, तब ही हम ईश्वर को पा सकते हैं।

भाषा अध्ययन

प्रश्न 1 : कविता में जब एक शब्द बार-बार आता है, और वह योजक चिन्ह द्वारा जुड़ा होता है, तो वहाँ ‘पुनरुक्ति प्रकाश’ अलंकार होता है; जैसे ‘पुलक-पुलक’इसी प्रकार के और शब्द खोजिए और जिनमें यह अलंकार हो।

उत्तर : कविता में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार वाले अनेक शब्द आए हैं, जो कि इस प्रकार हैं…

  • मधुर मधुर
  • सिहर सिहर
  • विहँस विहँस
  • युग युग
  • गल गल
  • पुलक पुलक

यह शब्द पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार को प्रकट कर रहे हैं। पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार वहाँ पर प्रकट होता है, जहाँ पर एक ही शब्द की लगातार दो बार पुनरावृत्ति हो।

योग्यता विस्तार

प्रश्न 1 इस कविता में जो भाव आए हैं, उन्हीं भावों पर आधारित कवयित्री द्वारा रचित कुछ अन्य कविताओं का अध्ययन करें। जैसे, (क) मैं नीर भरी दुख की बदली (ख) जो तुम जाते एक बार (यह सभी कविताएं ‘सन्धिनी’ में संकलित हैं। )

उत्तर : विद्यार्थी इन कविताओं का अध्ययन करें जो कि महादेवी वर्मा द्वारा ही रचित की गई हैं। विद्यार्थियों के सुविधा के लिए दोनों कविताएं दी जा रही हैं।

(क) मैं नीर भरी दुख की बदली

मैं नीर भरी दुख की बदली!
स्पन्दन में चिर निस्पन्द बसा क्रन्दन में
आहत विश्व हँसा नयनों में दीपक से जलते,
पलकों में निर्झारिणी मचली!
मेरा पग-पग संगीत भरा
श्वासों से स्वप्न-पराग झरा
नभ के नव रंग बुनते दुकूल छाया में
मलय-बयार पली।
मैं क्षितिज-भृकुटि पर घिर
धूमिल चिन्ता का भार बनी
अविरल रज-कण पर
जल-कण हो बरसी,
नव जीवन-अंकुर बन निकली!
पथ को न मलिन करता आना
पथ-चिह्न न दे जाता जाना;
सुधि मेरे आगन की जग में सुख की
सिहरन हो अन्त खिली!
विस्तृत नभ का कोई कोना
मेरा न कभी अपना होना,
परिचय इतना, इतिहास यही-
उमड़ी कल थी, मिट आज चली!

(ख) जो तुम जाते एक बार

जो तुम आ जाते एक बार।
कितनी करुणा कितने संदेश।
पथ में बिछ जाते बन पराग,
गाता प्राणों का तार-तार।
अनुराग भरा उन्माद राग
आँसू लेते वे पद पखार।
हँस उठते पल में आर्द्र नयन,
धुल जाता ओठों से विषाद।
छा जाता जीवन में वसंत,
लुट जाता चिर संचित विराग
आँखें देती सर्वस्व वार,
जो तुम आ जाते एक बार।

 

प्रश्न 2 : इस कविता को कंठस्थ करें तथा कक्षा में संगीतमय प्रस्तुति करें।

उत्तर : ये एक प्रायोगिक कार्य है। विद्यार्थी पाठ मे दी गई कविता को याद करें और अपनी कक्षा में संगीतमय प्रस्तुति करें।

प्रश्न 3 : महादेवी वर्मा को आधुनिक मीरा कहा जाता है। इस विषय पर जानकारी प्राप्त कीजिए।

उत्तर : जीहाँ, महादेवी वर्मा को आधुनिक मीरा कहा जाता है। महादेवी वर्मा ने अपनी कविताओं के माध्यम से अपने प्रियतम के ना मिल पाने की जो पीड़ा व्यक्त की है, वही पीड़ा मीरा ने अपने पदों के माध्यम से श्रीकृष्ण से ना मिल पाने की पीड़ा व्यक्त की थी।

जहाँ मीरा ने अपने पदों के माध्यम से श्रीकृष्ण के प्रति आपने अनन्य प्रेम को प्रकट किया, उसी प्रकार महादेवी वर्मा ने भी अपनी कविताओं के माध्यम से अपने प्रियतम के प्रति अनन्य प्रेम को प्रकट किया है। मीराबाई अपने आराध्य श्रीकृष्ण से मिलने के लिए निरंतर उनकी भक्ति करती रहती हैं और उनके प्रति आस्थावान रहती है। उसी प्रकार महादेवी वर्मा भी अपने आराध्य प्रभु से मिलने के लिए निरंतर उनकी भक्ति साधना करती हैं और अपनी आशा एवं आस्था का दीप जलाए रखती हैं।

इस तरह मीराबाई के पदों और महादेवी वर्मा की कविता तथा मीराबाई के पदों में भावों के समानता के कारण महादेवी वर्मा को आधुनिक मीरा कहा जाता है।

 

मधुर मधुर मेरे दीपक जल : महादेवी वर्मा (कक्षा-10 पाठ-6 हिंदी स्पर्श 2) (NCERT Solutions)

 


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साखी : कबीर (कक्षा-10 पाठ-1 हिंदी स्पर्श 2) (हल प्रश्नोत्तर)

पद : मीरा (कक्षा-10 पाठ-2 हिंदी स्पर्श 2) (हल प्रश्नोत्तर)

मनुष्यता : मैथिलीशरण गुप्त (कक्षा-10 पाठ-3 हिंदी स्पर्श भाग 2) (हल प्रश्नोत्तर)

पर्वत प्रदेश में पावस : सुमित्रानंदन पंत (कक्षा-10 पाठ-4 हिंदी स्पर्श 2) (हल प्रश्नोत्तर)

तोप : वीरेन डंगवाल (कक्षा-10 पाठ-5 हिंदी स्पर्श 2) (हल प्रश्नोत्तर)

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