भूख से मरने वाले व्यक्ति के लिए लोकतंत्र का कोई अर्थ और महत्व नहीं है’, यह कथन प्रसिद्ध राजनीतिक विश्लेषक ‘जे. ए. हाब्सन’ ने कहा था।
‘जे ए हाब्सन’ राजनीति शास्त्र के एक प्रसिद्ध पाश्चात्य विचारक थे। उन्होंने लोकतंत्र को परिभाषित करते हुए अनेक तरह की व्याख्या दी थीं। उन्होंने लोकतंत्र और व्यक्ति से संदर्भ में यह कथन व्यक्त किया था कि ‘भूख से मरने वाले व्यक्ति के लिए लोकतंत्र का कोई अर्थ व महत्व नहीं है।’ मानव की सबसे मूलभूत आवश्यकता उसके लिए अपना पेट को भरना है, यानि अपनी भूख मिटाना है। जब व्यक्ति भूख से पीड़ित हो तो वह लोकतंत्र में है या राजतंत्र ने इस बात का उसे कोई महत्व नहीं रह जाता।
‘जे ए हाब्सन’ ने लोकतंत्र को परिभाषित करते हुए अनेक व्याख्यायें दी हैं, जिनके अनुसार एक न्यायसंगत समाज और उत्तम सामाजिक व्यवस्था का ही नाम लोकतंत्र है। जे ए हाब्सन के अनुसार जब किसी व्यक्ति को अपना पेट भरने के लिए भोजन तथा जीवन की अन्य मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति करने के लिए जूझना पड़ता हो और फिर भी वह अपनी भूख नही मिटा पाता हो, वह अपनी मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति नही कर पाता हो तो वहाँ पर लोकतंत्र की कोई सार्थकता नही रहती है।
लोकतंत्र का असली उद्देश्य तब तक पूरा नहीं होता, जब तक लोकतंत्र में हर व्यक्ति को अपने जीवन की मूलभूत आवश्यकताएं सहज रूप से उपलब्ध नही होतीं। एक भूखा व्यक्ति जो भूख से पीड़ित है, जिसे अपनी पेट की भूख मिटाने की चिंता हो, वह यह नहीं देखता कि वह लोकतंत्र में है अथवा राजतंत्र में है। उसे तो पहले अपने पेट को भरने की चिंता रहेगी।
जे ए हॉब्सन’ जिनका पूरा नाम ‘जॉन एटकिंसन हॉब्सन’ था, वह इंग्लैंड के एक प्रसिद्ध समाजशास्त्री और अर्थशास्त्री थे,।
जे ए हॉब्सन का जन्म 6 जुलाई 1858 को इंग्लैंड के डर्बी शहर में हुआ था। वह प्रसिद्ध गणितज्ञ अर्नेस्ट विलियम हॉब्सन के भाई भी थे। हॉब्सन को साम्राज्यवाद तथा समाजवाद पर अपने लेखन कार्यों के लिए जाना जाता है।
हॉब्सन ने अर्थशास्त्र एवं समाजशास्त्र के संबंध में अनेक विचारों का प्रतिपादन किया था।
उसी के अंतर्गत हॉब्सन ने यह कहा था कि ‘भूख से मरने वाले व्यक्ति के लिए लोकतंत्र का कोई अर्थ और कोई महत्व नहीं है।’ उसे उस समय केवल अपने पेट की भूख मिटाने की चिंता होगी ना कि यह कि वह लोकतंत्र में है अथवा राजतंत्र में।
जे ए हॉब्सन की मृत्यु 1 अप्रैल 1940 को 81 वर्ष की आयु में हुई।