मन लागा उन मन्न सौं, गगन पहुँचा जाइ।
देख्या चंद बिहूँणां, चांदिणाँ, तहाँ अलख निरंजन राइ।।
संदर्भ : ये दोहा कबीर की साखियां है। इस दोहे के माध्यम से कबीर ने उस अवस्था का वर्णन किया है, जब मन में ज्ञान का उदय हो जाता है और मनुष्य जिस आनंद का अनुभव करता है कबीर ने उसी अवस्था का वर्णन किया है।
भावार्थ : कबीर कहते हैं कि जब मन में ज्ञान का प्रकाश प्रज्ज्वलित हुआ और मन ज्ञान के प्रकाश से आलोकिक हो गया तो वह संसार रूपी बंधनों से मुक्त हो गयाष संसार रूपी बंघनों से मुक्त होकर मन ज्ञान की उच्चतम अवस्था में पहुंच गया और ब्रह्मांड में लीन हो गया। इस ब्रह्मांड में मन ने परम आनंद का अनुभव कियाष उसके चारों तरफ प्रकाश ही प्रकाश बिखरा हुआ था। उसने प्रकाश के एक पुंज के रूप में साक्षात ब्रह्म के दर्शन किए।
व्याख्या : यहाँ पर कबीर ने मन की उस अवस्था का वर्णन किया है, जब वह ज्ञानोदय की चरम अवस्था में पहुंच जाता है। जब मनुष्य का मन ज्ञान के उच्चतम स्तर पर पहुंचकर पूर्ण ज्ञान को प्राप्त कर लेता है तो उसके मन से सारे अंधकार मिट जाते हैं, तो वह सांसारिक बंधनों से मुक्त हो जाता है और उसका मन ब्रह्मांड में परम आनंद में लीन हो जाता है। तब वह उस ब्रह्म के दर्शन करता है जो साक्षात ज्ञान का प्रतीक है।
कठिन शब्दों के अर्थ
उन मन्न : अन्तर्मन
गगन : ब्रहाण्ड
बिहूँणा : प्रकाश
चांदिणा : प्रकाश पुंज
अलख निरंजन : निराकार परमात्मा
Related दोहे…
पिंजर प्रेम प्रकासिया, अंतरि भया उजास। मुख कस्तूरी महमहीं, बाँणी फूटी बास।। भावार्थ बताएं।
कबीर घास न निंदिए, जो पाऊँ तलि होइ। उड़ी पडै़ जब आँखि मैं, खरी दुहेली हुई।। अर्थ बताएं।