पर्वत प्रदेश में पावस : सुमित्रानंदन पंत (कक्षा-10 पाठ-4 हिंदी स्पर्श 2) (हल प्रश्नोत्तर)

NCERT Solutions (हल प्रश्नोत्तर)

पर्वत प्रदेश में पावस : सुमित्रानंदन पंत (कक्षा-10 पाठ-4 हिंदी स्पर्श 2)

Parvat Pradesh Me Pavas : Sumitranandan Pant (Class 10 Chapter 4 Hindi Sparsh 2)


पर्वत प्रदेश में पावस : सुमित्रानंदन पंत

पाठ के बारे में…

इस पाठ में कवि सुमित्रानंदन द्वारा रचित ‘पर्वत प्रदेश में पावस’ नामक कविता प्रस्तुत की गई है, जो प्रकृति के रोमांच और प्राकृतिक सौंदर्य को अपनी आँखों से निरखने की अनुमति देती है। सुमित्रानंदन पंत प्रकृति के सुकुमार कवि कहे जाते हैं और उनकी अधिकांश कविताओं में प्रकृति की ऐसी ही सुखद अनुभूति होती है। उनकी कविताएं पढ़कर ऐसा प्रतीत होता है कि हम स्वयं उस प्राकृतिक वातावरण में विचरण कर रहे हो और ऐसे ही किसी प्राकृतिक मनोहर स्थल पर आ गए हो।

प्रस्तुत कविता में भी कवि सुमित्रानंदन पंत ने पर्वत प्रदेश में वर्षा ऋतु के समय के सौंदर्य का वर्णन किया है। कविता के माध्यम से कवि ने पहाड़ों के प्राकृतिक सौंदर्य का वर्णन करके उसकी अनुभूति कराने का अवसर दिया है। कविता पढ़कर ऐसा लगता है कि अभी-अभी पर्वतीय स्थल का विचरण करके वापस लौटे हों।



रचनाकार के बारे में…

सुमित्रानंदन पंत जोकि छायावाद युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक थे, वह प्रकृति के सुकुमार कवि कहे जाते हैं। प्राकृतिक सौंदर्य का जितना सुंदर चित्रण उन्होंने किया है, उतना अन्य किसी ने नहीं किया।

सुमित्रानंदन पंत का जन्म 20 मई 1900 उत्तराखंड के कौसानी (अल्मोड़ा) में हुआ था। वह बचपन से ही काव्य प्रतिभा के धनी थे और मात्र 7 साल की आयु में ही उन्हें अपने विद्यालय में काव्य पाठ के लिए पुरस्कार प्राप्त हुआ था। उन्होंने मात्र 15 वर्ष की आयु से ही स्थाई रूप से साहित्य का कार्य आरंभ कर दिया था।

उनकी कविता में प्रकृति प्रेम और राष्ट्रवाद की स्पष्ट झलक दिखाई देती है। उनकी कविता में महात्मा गांधी तथा अरविंद दर्शन का प्रभाव भी नजर आता है।

सुमित्रानंदन पंत की प्रमुख कृतियों में वीणा, पल्लव, युगवाणी, ग्राम्या, स्वर्ण किरण, लोकायतन, कला और बूढ़ा चाँद, चिदंबरा आदि के नाम प्रमुख हैं। उन्हें 1961 में भारत सरकार के तृतीय सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म भूषण से सम्मानित किया जा चुका है। उन्हें साहित्य का ज्ञानपीठ पुरस्कार भी मिल चुका। उन्हें 1960 में उनके ‘कला और बूढ़ा चाँद’ नामक कविता संग्रह के लिए साहित्य अकादमी का पुरस्कार भी मिला।

सुमित्रानंदन पंत का निधन सन 28 दिसंबर 1977 को हुआ।



हल प्रश्नोत्तर

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।

प्रश्न 1: पावस ऋतु में प्रकृति में कौन-कौन से परिवर्तन आते हैं? कविता के आधार पर स्पष्ट कीजिए?

उत्तर : पावस ऋतु में प्रकृति में अनेक परिवर्तन आते हैं। पावस ऋतु यानि वर्षा ऋतु में पर्वतीय प्रदेशों में प्रकृति में निरंतर परिवर्तनशील रहती है। वर्षा ऋतु में मौसम हर पल बदलता रहता है। कभी अचानक से तेज वर्षा होने लगती है और वर्षा का जल पहाड़ों के नीचे जमा हो जाता है । इस जल को देखकर दर्पण के जैसा आभास होता है, जिसमें पर्वतमाला पर खिले हुए फूलों का प्रतिबिंब दिखाएं देता है। तब ऐसा लगता है कि पर्वत अनेक नेत्र खोलकर प्रकृति के मनोरम दृश्य को देख रहा हो और उसका प्रतिबिंब दर्पण रूपी तालाब में नजर आ रहा हो।

पर्वत से गिरते हुए झरने ऐसे प्रतीत होते हैं, जैसे वह पर्वत की गौरव गाथा का गान कर रहे हों। ऊँचे-ऊँचे वृक्ष आकाश की ओर एकटक निहारते हुए चिंतामग्न से दिखाई देते हैं। इस परिवर्तनशील मौसम में अचानक काले-काले बादल घिरने लगते हैं और तब ऐसा लगता है कि मानो बादल के रूप में पंख लगाकर पर्वत स्वयं कहीं उड़ जाना चाहते हों।

चारों तरफ फैला हुआ कोहरा धुएँ के समान दिखाई देता है। तालाबों से उठते कोहरे के देखकर ऐसा लगता है कि तालाब में चारों तरफ आग लग गई हो। आकाश में मंडराते हुए बादलों के देखकर ऐसा लगता है कि मानों स्वयं इंद्र देवता बादलों की सवारी कर रहे हों।


प्रश्न 2 ‘मेखलाकार’ शब्द का क्या अर्थ है? कवि ने इस शब्द का प्रयोग यहाँ क्यों किया है?

उत्तर : मेखलाकार शब्द का अर्थ है मेखला अर्थात करधनी नाम का एक आभूषण, जो स्त्रियों द्वारा कमर में पहना जाता है। मेखलाकार मेखला और आकार इन दो शब्दों से मिलकर बना है। मेखला मतलब करधनी, जो स्त्रियों का आभूषण होता है, जिसे वह कमर में पहनती हैं।

कवि ने प्रकृति के सौंदर्य का वर्णन करते हुए कहा है कि पर्वतों का ढलान देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे प्रकृति ने मेखला आभूषण से आवृत कर रखा हो।

कविता यहां पर कहने का तात्पर्य यह है कि विशाल पहाड़ जो पृथ्वी को चारों तरफ से घेरे हुए हैं, वे पर्वत चारों तरफ गोल-गोल आकृति में फैले हुए हैं, जो करधनी का आभास देते हैं। इसीलिए कवि ने मेखलाकार शब्द का प्रयोग किया है।


प्रश्न 3 : सहस्र दृग-सुमन’ से क्या तात्पर्य है? कवि ने इस पद का प्रयोग किसके लिए किया होगा?

उत्तर : ‘सहस्र दृग सुमन’ से कवि का तात्पर्य है कि हजारों पुष्प की आँखें। कवि ने इस पद का प्रयोग उन अंसख्य फूलों के लिए किया है, जो पर्वत पर चारों तरफ फैले हुए हैं।

पावस ऋतु में पर्वत पर असंख्य फूल खिल जाते हैं और वह वे असंख्य  फूल ऐसे दिखाई देते हैं, जैसे पर्वत की हजारों आँखे हों। पर्वत उन आँखों से तालाब में अपना प्रतिबिंद को देखकर अपने अनुपम सौंदर्य को निहार रहा हो। इसीलिए कवि ने दृग सुमन का प्रयोग पर्वत पर खिले फूल के लिए किया है और और उन्हें पर्वत की आँखों की उपमा दी है।


प्रश्न 4 : कवि ने तालाब की समानता किसके साथ दिखाई है और क्यों?

उत्तर : कवि ने तालाब की समानता दर्पण के साथ की है। कवि ने तालाब की समानता दर्पण के साथ करते हुए इसका कारण बताया है। कवि के अनुसार जब घनघोर वर्षा के कारण पर्वत प्रदेशों में पानी एक जगह जमा हो जाता है तो वह तालाब का रूप ले लेता है। उस तालाब में पर्वत पर खिले असंख्य फूल सहित पर्वत का प्रतिबिंब दिखाई देता है।

तालाब के स्वच्छ एवं निर्मल जल में जब पर्वत का प्रतिबिंब दिखाई देता है तो ऐसा लगता है कि तालाब नहीं हो कोई दर्पण हो, जिसमें पर्वत अपना प्रतिबिंब देखकर अपने सौंदर्य को निहार रहा हो।


प्रश्न 5 : पर्वत के हृदय से उठकर ऊँचे-ऊँचे वृक्ष आकाश की और क्यों देख रहे थे और वे किस बात को प्रतिबिंबित करते हैं?

उत्तर : पर्वत के हृदय से उठकर ऊँचे-ऊँचे वृक्ष आकाश की ओर इसलिए देख रहे थे जैसे उन्हें कोई चिंता हो रही थी। ऐसा लगता था कि वे आकाश की ऊँचाइयों को छूना चाहते थे। वे अपनी किसी उच्च आकांक्षा को पाने के लिए आकाश की ओर देख रहे थे। वह इस बात का प्रतिबिंबित करते हैं कि बिल्कुल मौन रहकर भी कोई संदेश दिया जा सकता है। अर्थात अपने उद्देश्य को पाने के लिए केवल अपने मन और दृष्टि को ही स्थिर रखना आवश्यक है अर्थात जीवन में अपने लक्ष्य को पाने के लिए मौन रहकर चुपचाप अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर होते रहना चाहिए। वृक्ष इसी बात को प्रतिबिंबित करते हैं।


प्रश्न 6 : शाल के वृक्ष भयभीत होकर धरती में क्यों धँस गए?

उत्तर : शाल के वृक्ष भयभीत होकर धरती में इसलिए धँस गए क्योंकि पर्वतीय प्रदेशों में घनघोर वर्षा होने के कारण बादल काफी नीचे तक आ जाते हैं। अचानक बड़े-बड़े बादलों के आ जाने से और मूसलाधार वर्षा होने से घनघोर वर्षा के कारण बादल और कोहरा चारों तरफ इतना अधिक छा जाता है कि चारों तरफ का दृश्य देखना तक बंद हो जाता है। ऐसे में शाल के वृक्ष भी बादलों के बीच ढंक जाते हैं तो ऐसा लगता है कि मूसलाधार वर्षा के कारण शाल के भयभीत होकर धरती में धँस गए हैं।


प्रश्न 7 : झरने किसके गौरव का गान कर रहे हैं? बहते हुए झरने की तुलना किससे की गई है?

उत्तर : झरने पर्वत के गौरव का गान कर रहे हैं। कवि ने बहते हुए झरने की तुलना ऐसे की है, जैसे पर्वत की छाती पर मोतियों की कोई लड़ी सजी हो। ऊँचे-ऊँचे पर्वत के शिखरों से गिरने वाले झरने गिरते हुए ऐसा प्रतीत हो रहे हैं, जैसे वे झर-झर करते ध्वनि करते हुए पर्वत के गौरव का गुणगान कर रहे हों। गिरते हुए झरने बेहद मनोरम दिखाई पड़ रहे हैं, जो जीवन में उत्साह और उमंग भर रहे हैं।


प्रश्न 8 : (ख) निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिए

1. है टूट पड़ा भू पर अंबर।
2. यों जलद-यान में विचर-विचर
था इंद्र खेलता इंद्रजाल।
3. गिरिवर के उर से उठ-उठ कर
उच्चाकांक्षाओं से तरुवर
हैं झांक रहे नीरव नभ पर
अनिमेष, अटल, कुछ चिंतापर।

उत्तर : भाव इस प्रकार होंगे…

1. है टूट पड़ा भू पर अंबर।

भाव : इस पंक्ति के माध्यम से कवि ने वर्षा के मूसलाधार स्वरूप का वर्णन किया है। पर्वत प्रदेश में पावस ऋतु में जब चारों तरफ काले-काले धने घनघोर बादल छा जाते हैं तो वह ऐसी घनघोर वर्षा करने लगते हैं कि ऐसा प्रतीत होता है कि आकाश धरती पर टूट पड़ा है।वर्षा इतनी मूसलाधार होती है कि ऐसा लगता है कि आकाश धरती तक आ गया है।

2. −यों जलद-यान में विचर-विचर
था इंद्र खेलता इंद्रजाल।

भाव : इस पंक्ति के माध्यम से कवि ने पावस ऋतु में पर्वत प्रदेश में प्रकृति के बदलते रूप का वर्णन किया है। वर्षा ऋतु में पर्वतीय प्रदेशों में बादल कितने घने हो जाते हैं और चारों तरफ ऐसा कहा जाता है कि पेड़-पौधे, पर्वत, झरने, तालाब आदि सब कोहरे से आच्छादित होकर अदृश्य हो जाते हैं और दिखाई नहीं देते। तालाबों से कोहरे के रूप में उठता हुआ ऐसे लगता है कि तालाबों में आग लग गई हो।

शाल के वृक्ष भी भयभीत होकर धरती में से हुए घँसे हुए नजर आते हैं। बादल और वर्षा के कारण और कोहरे के कारण शाल के वृक्ष बादलों के बीच ढंक जाते हैं और ऐसा लगता है कि वह धरती में धँस गए हो। बादल आकाश से उतरकर इतने नीचे आ जाते हैं कि वह पहाड़ के ऊपर उड़ते होते हुए प्रतीत होते हैं। इससे ऐसा आभास होता है कि पहाड़ भी बादलों के साथ उड़े रहे हैं। उड़ते हुए बादलों को देखकर ऐसा लगता है कि इन बादल रूपी वाहन में स्वयं इंद्र अपनी लीला को देखने निकले हैं।

3. गिरिवर के उर से उठ-उठ कर
उच्चाकांक्षाओं से तरुवर
हैं झांक रहे नीरव नभ पर
अनिमेष, अटल, कुछ चिंतापर।

भाव : इन पंक्तियों के माध्यम से कवि ने पर्वतीय प्रदेशों में वर्षा ऋतु के समय सौंदर्य का वर्णन करते हुए वृक्षों की क्रियाओं का वर्णन किया है। कवि कहते हैं कि वर्षा ऋतु में वृक्ष पर्वत के हृदय से ऊपर उठकर आकाश की ओर देखते हुए ऐसे प्रतीत हो रहे हैं कि जैसे उनके मन में भी कोई उच्च आकांक्षा रही हो। वे आकाश की ओर स्थिर दृष्टि से देखते हैं। यह स्पष्ट करने का प्रयास कर रहे हैं कि वह भी आकाश की ऊँचाइयों को छूना चाहते हैं।

वृक्ष आकाश की ऊँचाइयों को छू तो लेना चाहते हैं पर उनके मन में कुछ चिंता भी दिखाई दे रही है। कवि ने यह स्पष्ट करने का प्रयत्न किया है कि मनुष्य को अपने लक्ष्य की ओर स्थिर भाव ध्यान मग्न होकर उसी ओर निरंतर अग्रसर होना चाहिए।


कविता का सौंदर्य

प्रश्न 1 : इस कविता में मानवीकरण अलंकार का प्रयोग किया गया है? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर : इस कविता में कवि ने अनेक पंक्तियों में मानवी करण अलंकार का प्रयोग किया है। मानवीकरण अलंकार वहाँ पर प्रयोग किया जाता है, जहाँ पर प्रकृति के तत्वों को मानव रूप में क्रिया संपन्न करते हुए दर्शाया जाता है। कवि ने ‘पर्वत प्रदेश में पावस ऋतु’ कविता में प्रकृति के अनेक तत्वों को मानवीय रूप में क्रियाएं संपन्न करते हुए दर्शाया है।

उदाहरण के लिए…

पर्वत द्वारा अपने फूल रूपी नेत्रों के माध्यम से अपना प्रतिबिंब निहारते हुए गौरव गान का अनुभव करना,
झरनों द्वारा पर्वत का यशोगान करना,
पेड़ों का आकाश की ओर देखना और उच्च आकांक्षा प्रकट करना,
बादलों का पंख फड़फड़ाना,
इंद्र द्वारा बादल पर बैठकर सवारी करना और अपना जादुई खेल दिखाना

यह सब क्रियाओं में प्रकृति के तत्व मानव के रूप में संपन्न करते हुए दिखाई दे रहे हैं। इसलिए इन सब में मानवीकरण अलंकार है।


प्रश्न 2 : आपकी दृष्टि में इस कविता का सौंदर्य इनमें से किस पर निर्भर करता है −
(क) अनेक शब्दों की आवृति पर
(ख) शब्दों की चित्रमयी भाषा पर
(ग) कविता की संगीतात्मकता पर

उत्तर : हमारी दृष्टि में इस कविता का सौंदर्य नीचे दिए गए तीनों विकल्पों पर निर्भर करता है अर्थात कविता का सौंदर्य किसी भी एक कारक पर निर्भर नहीं है। तीनों ही कारक कविता को सुंदर बनाते हैं।

(क) अनेक शब्दों की आवृत्ति पर : पल-पल परिवर्तित प्रकृति वेश गिरी का गौरव गाकर झर-झर मद में नस-नस उत्तेजित कर गिरवर के उर से उठ-उठ करइन शब्दों की आवृत्ति कविता में हुई है, जो कविता को बेहद सुंदर बना रही है और कविता की गति को एक लय प्रदान कर रही है।

(ख) शब्दों की चित्रमयी भाषा पर : कवि ने कविता में शब्दों को चित्रमयी भाषा के रूप में प्रस्तुत किया है। जैसे मेखलाकार पर्वत, अपार उड़ गया, अचानक लो भूधर फड़का अपार पारद के पर है टूट पड़ा भू पर अंबर इन सभी उन के माध्यम से कवि ने कविता की चित्रमयी भाषा प्रकट की है, जो कविता के सौंदर्य को बढ़ाती है।

(ग) कविता की संगीतात्मकता पर : कवि ने कविता में संगीतात्मकता और लय को भी ध्यान रखा है। कविता सुनने और पढ़ने में सरस और बेहद मधुर लगती है। कविता को कविता का पठन और श्रवण मधुरता उत्पन्न करता है, जो कविता की सार्थकता को प्रकट कर रहा है।


प्रश्न 3 : कवि ने चित्रात्मक शैली का प्रयोग करते हुए पावस ऋतु का सजीव चित्र अंकित किया है। ऐसे स्थलों को छाँटकर लिखिए।

उत्तर : कवि ने चित्रात्मक शैली का प्रयोग करते हुए पावस ऋतु का सजीव चित्र अंकित किया है। ये पंक्तियां इस प्रकार हैं…
1. मेखलाकार पर्वत अपार अपने सहस्र दृग-सुमन फाड़, अवलोक रहा है बार-बार नीचे जल में निज महाकार जिसके चरणों में पला ताल दर्पण फैला है विशाल!
2. गिरिवर के उर से उठ-उठ कर उच्चाकांक्षाओं से तरुवर हैं झाँक रहे नीरव नभ पर अनिमेष, अटल, कुछ चिंतापर।


योग्यता विस्तार

प्रश्न 1 : इस कविता में वर्षा ऋतु में होने वाले प्राकृतिक परिवर्तनों की बात कही गई है। आप अपने यहाँ वर्षा ऋतु से में होने वाले प्राकृतिक परिवर्तनों के विषय में जानकारी प्राप्त कीजिए।

उत्तर : इस पाठ में वर्षा ऋतु में होने वाले प्राकृतिक परिवर्तनों की बात कही गई है। हमारे यहां भी वर्षा ऋतु में अनेक तरह के प्राकृतिक परिवर्तन होते हैं। हमारा क्षेत्र समुद्र तटीय क्षेत्र है, जहाँ पर अत्यधिक वर्षा होती है। वर्षा के आगमन से ही गर्मी का नामोनिशान मिट जाता है और मौसम बेहद सुहावना हो जाता है।

हमारे क्षेत्र में जो पानी की झीले सूख रही होती हैं, वह पानी से लबालब भर जाती हैं। पेड़ पौधे भी हरे हो जाते हैं। प्राकृतिक वातावरण बेहद मनमोहक हो जाता है और चारों तरफ पक्षियों आदि की चहचहाहट सुनाई देने लगती है। वर्षा के कारण चारों तरफ पानी और कीचड़ दिखाई देने लगता जिससे फिसलन हो जाती है। घर से बाहर निकलते समय हमेशा छाता लेकर निकलना पड़ता है ताकि अचानक हुई वर्षा से बचा जा सके।


परियोजना कार्य

प्रश्न 1 : वर्षा ऋतु पर लिखी गई उन कवियों की कविताओं का संग्रह कीजिए और कक्षा में सुनाइए।

उत्तर : विद्यार्थी विभिन्न और पत्र-पत्रिकाओं आदि में वर्षा ऋतु पर कविताओं का संग्रह करके उन्हें अपनी कक्षा में सुनाएं।


प्रश्न 2 : बारिश, झरने, इंद्रधनुष, बादल, कोयल, पानी, पक्षी, सूरज, हरियाली और प्रकृति विषयक शब्द का प्रयोग करते हुए एक कविता लिखने का प्रयास कीजिए।

उत्तर : दिए गए शब्दों का प्रयोग करते हुए एक कविता इस प्रकार है…

वर्षा रानी-वर्षा रानी,
लायी है बारिश का पानी,
चारों तरफ बह रहे हैं झरने,
इंद्रधनुष के क्या हैं कहने,
पक्षी लगे हैं चहकने,
फूल भी लगे हैं महकने,
बादल की गूंजी गड़गड़ाहट,
पक्षियों की चहचहाहट,
सूरज बाबा कहाँ गुम हो गए,
बादलों के पीछे ही छुप गए
चारों तरफ फैली हरियाली
मन को मोहित करने वाली


पर्वत प्रदेश में पावस : सुमित्रानंदन पंत (कक्षा-10 पाठ-4 हिंदी स्पर्श 2) (NCERT Solutions हिंदी)

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