इरास्टियनवाद एक सिद्धांत है जो चर्च को पूरी तरह से राज्य की शक्ति के अधीन मानता है। इस सिद्धांत का नाम थॉमस इरास्टस (1524-1583) के नाम पर पड़ा है, जो एक स्विस चिकित्सक और धर्मशास्त्री थे। हालांकि, यह ध्यान देने योग्य है कि इरास्टस ने स्वयं वह सिद्धांत नहीं प्रतिपादित किया जो बाद में उनके नाम से जाना गया।
इरास्टस ने अपने ‘पचहत्तर थीसिस’ (1568) में मुख्य रूप से धार्मिक बहिष्कार के मुद्दे पर लिखा था। उन्होंने तर्क दिया कि धार्मिक अनुष्ठानों से लोगों को बाहर रखने का अधिकार चर्च के पास नहीं होना चाहिए। उनका मानना था कि एक ईसाई राज्य में, चर्च के बाहरी प्रशासन की जिम्मेदारी शासक की होनी चाहिए।
इरास्टस के विचारों का 17वीं सदी के इंग्लैंड में बड़ा प्रभाव पड़ा, जहां चर्च और राज्य के संबंधों पर बहस में ‘इरास्टियनवाद’ शब्द का प्रयोग किया गया।
अतः, यद्यपि थॉमस इरास्टस को ‘प्रथम इरास्टियन’ नहीं कहा जा सकता, क्योंकि उन्होंने वह सिद्धांत नहीं प्रतिपादित किया जो बाद में उनके नाम से जाना गया, फिर भी वे इस विचारधारा के मूल में हैं और इसलिए इस सिद्धांत का नाम उनके नाम पर पड़ा।
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